बहुत दिनों से आपको आदि की कोई खब़र नहीं मिली। आप सोच रहे होंगे कि आदि कहाँ ग़ायब हो गया .. अरे मैं कहीं ग़ायब-वायब नहीं हुआ, मैं तो पापा ,मम्मी और चाचा को लेकर नाथद्वारा गया हुआ था..
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हम गुरुवार १४ अगस्त को दिल्ली से चले, जाना तो ट्रेन से था पर क्या करें टिकट ही confirm नहीं हुआ.. पापा-मम्मी बहुत चिन्ता में आ गये... बहुत दुविधा थी .. दुविधा इसलिए कि पिंकु चाचा कह रहे थे कि कार से चलते हैं . पर पापा मम्मी तय नहीं कर पा रहे थे... ख़ैर ! थोडे़ सोच-विचार के बाद तय किया कि हम सभी कार से ही जायेंगे... क्योंकि जाना बहुत ज़रूरी था । सभी परिवारजन आदि से मिलने आने वाले थे। कुछ ही देर बाद चाचा अपनी नई कार के साथ आ गये.. और समान रख हम नाथद्वारा की और रवाना हो गये। समय हुआ था शाम के करीब ६.३०.. शुरू में तो मैं काफ़ी परेशान हुआ। क्यों न होता ! गाड़ी चल ही नहीं रही थी... ३ घण्टे तो हमें गुड़गाँव पार करने में ही लग गये। इसके बाद तो गाड़ी सर्राटे से चलने लगी... मम्मी मे मुझे पिछली सीट पर सुला दिया..रात-भर चलने के बाद सुबह -सुबह हम नाथद्वारा पहुँचे । ढेर सारे लोग मेरा इंतज़ार कर रहे थे, देख कर ख़ुशी हुई। यह एक "परिवारिक सम्मेलन" था... सभी परिजन वहाँ थे..बहुत सारे चाचा और बुआ जी भी आई थीं ..
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नाथद्वारा में सबने बहुत मस्ती की.. मैंने भी की... और जब Dance चल रहा था तो मैं भी खुद को नहीं रोक पाया और खूब उछला... हाँ ! अभी तो मेरा डान्स ऐसे ही होता है। सभी लोग दिन-भर आपस में बातें करते। games खेलते और देर शाम से रात तक नाच गाना चलता। पता ही नहीं चला, तीन दिन कैसे बीत गये..
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बीच में एक दिन राखी भी तो आई थी, उस दिन सभी बुआओं ने मुझे प्यारी - प्यारी राखियाँ पहनाई.. और तिलक भी लगाया।
नाथद्वारा में मुझे "best kid" का अवार्ड भी मिला... हूँ न मैं अच्छा बच्चा ?
हम रबिवार की दोपहर वापस दिल्ली के लिए निकल पडे़। इस बार तो हमारे साथ चंदु बड़ी मामी भी थी.. हम सोमवार को सुबह दिल्ली पहुँचे ...बहुत चले क़रीब १३०० किमी.. पर बहुत मजा़ आया..
आप होंगे अच्छे बच्चे, मगर आपसे ज्यादे प्यारा तो सबसे छोटा वाला बच्चा है.. :)
ReplyDeleteअरे वाह हमारे बेस्ट किड-आप तो सबमें बेस्ट किड हो. सबसे मिले, खूब मस्ती की-हमारा ब्लॉग दिखाया की नहीं सबको?? कि बस अपना ही अपना ब्लॉग दिखाया. :) आपका डांस भी सबसे अच्छा रहा होगा-सुन्दर सुन्दर आदि की फोटो से तो ऐसा ही लग रहा है. :)
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