लग रहा था कि मैं घुटने से चलूगां ही नहीं सीधे चलना सीखुगां.. चलना सीखाना शुरु भी कर दिया.. लेकिन इससे पहले मैं कि मैं चलू मैनें घुटने से चलना (crawl) भी सीख लिया.. अभी कुछ दिन पहले ही.. अब घर का हर कोना मेरी पहुँच में है..
Saturday, February 28, 2009
Thursday, February 26, 2009
एक नमकीन पोस्ट..
मम्मी शाम को ऑफिस के आकर चाय के साथ भुजिया खाना पंसद करती है.. मोटी वाली भुजिया.. नमकीन विशेष रुप से जोधपुर से आता है.. बहुत स्वादिष्ट होता है ये.. मुझे कैसे पता.. अरे मैं भी तो खाता हूँ इसे मम्मी के साथ.. ये भुजिया आसानी से पकड़ में आ जाती है और अब मेरे तीन दांत है इसे तोड़ने के लिये.. दाँतो से तोड़्ते हुए "कट" की आवाज सुन खुश होता हूँ और मजे से खाता हूँ..
कैसी लगी ये नमकीन पोस्ट?
कैसी लगी ये नमकीन पोस्ट?
Wednesday, February 25, 2009
लो भईया हम अपने पैरो के ऊपर खडे़ हो गये
बुजुर्गों ने,
बुजुर्गों ने, फरमाया की पैरो पे अपने खडे़ होके दिखलाओ,
फिर ये जमाना तुम्हारा है..
जमाने के सुर ताल के साथ चलते चले जाओ
फिर हर तराना तुम्हारा फसाना है
अरे तो लो भईया हम
हम अपने पैरो के ऊपर खडे़ हो गये
और मिला ली है ताल
दबालेगा दांतो तले उंगलिया, लिंया
ये जमाना देखकर अपनी चाल
वाह वाह वाह वाह धन्यवाद...
आग्रह - कल अचानक से मेरे सखा 40 से घट कर 25 हो गये.. पहले तो लगा अरे इतने दोस्त अचानक कहां चले गये..पर शाम होते होते आशीष अंकल ने बताया कि ये ब्लोगर के तकनिकी कारण है और उसका समाधान यहां बताया.. देर रात तक ये संख्या 30 हो गई.. देख लिजिये आप तो मेरे सखा की सुची में हैं न?
मेरे सखा बनने के लिये यहां चटका लगायें
Monday, February 23, 2009
ठण्डे ठण्डे पानी से नहाना चहिये..
सर्दी कम हो गई है इसलिये पानी से खेलने को मिल जाता है.. पानी मैं खेलना मेरे मनपसंद कामों में है.... वैसे मैं "जाट" अंकल की तरह आपको नहाने का पूरा प्रोसेस नहीं बताऊंगा.. आप केवल ये विडियो देखिये.. इस बार थोडा बड़ा है लगभग २ मिनिट का.. पर है गारंटेड आईटम..
आया मजा़?
आया मजा़?
Sunday, February 22, 2009
बडे़ लोग भी मिलने आते हैं.
कल मुझसे मिलने CVS अंकल आये, आंटी के साथ.. CVS अंकल मम्मी की ऑफिस मैं वरिष्ठ सलाहकार है.. काफी समय से घर आने का प्लान बना रहे थे.. पर वक्त तय नहीं हो पा रहा था.. आखिर इस सप्ताह वो हमारे घर के नज़दीक किसी काम से आ रहे थे, तो मम्मी ने आंटी से बात कर उन्हे बुला ही लिया..
अंकल-आंटी दोपहर में आये... उनके आने से पहले ही मैं खाना खा चुका था और नींद का कोटा भी पूरा कर चुका था.. ताकि उनके साथ अच्छे से समय बिता सकूँ... वो मेरे लिये उपहार भी लाये.. अच्छे से पैक कर... चमकीली चमकीली पैकिंग मुझे बहुत आकर्षित कर रही थी.. पर मुझसे खुल नहीं रही थी.. आखिर मम्मी ने पैकिंग खोल कर दी.. उसमे से निकला एक सुन्दर खिलौना... all-in-one...इसमें मेरे पसंद की तीन चीजें है... खाने के लिये stik, मेरे पंसद का धागा, और बजाने के लिये पैड.. है न all-in-one..
इतना अच्छा खिलौना लाने के लिये अंकल-आंटी को थेंक्यु तो बोलना था न, चढ़ गया गोदी में.. प्यार से बात की और अंकल मुझसे "तेलगु" में बात करने लगे.. उनके प्यार की भाषा समझने के लिये तो चहरे के भाव ही काफी थे... अंकल कह रहे थे..."बहुत अच्छा बच्चा"...
आज का दिन बहुत अच्छा रहा.. शाम को स्नेहल चाचा भी मिलने आये.. मेरे साथ बहुत देर तक खेले.. पर चाचा ये देख कर हैरान थे कि मैं इतनी आसानी से कैसे खाना खा लेता हूँ, इतनी आसानी से कैसे सो जाता हूँ.. मम्मी पापा को तंग नहीं करता.. अब आप ही चाचा को समझाओ...
अंकल-आंटी दोपहर में आये... उनके आने से पहले ही मैं खाना खा चुका था और नींद का कोटा भी पूरा कर चुका था.. ताकि उनके साथ अच्छे से समय बिता सकूँ... वो मेरे लिये उपहार भी लाये.. अच्छे से पैक कर... चमकीली चमकीली पैकिंग मुझे बहुत आकर्षित कर रही थी.. पर मुझसे खुल नहीं रही थी.. आखिर मम्मी ने पैकिंग खोल कर दी.. उसमे से निकला एक सुन्दर खिलौना... all-in-one...इसमें मेरे पसंद की तीन चीजें है... खाने के लिये stik, मेरे पंसद का धागा, और बजाने के लिये पैड.. है न all-in-one..
इतना अच्छा खिलौना लाने के लिये अंकल-आंटी को थेंक्यु तो बोलना था न, चढ़ गया गोदी में.. प्यार से बात की और अंकल मुझसे "तेलगु" में बात करने लगे.. उनके प्यार की भाषा समझने के लिये तो चहरे के भाव ही काफी थे... अंकल कह रहे थे..."बहुत अच्छा बच्चा"...
और आंटी की सिफारिश से मुझे गाजर का हलवा भी खाने को मिला...
आज का दिन बहुत अच्छा रहा.. शाम को स्नेहल चाचा भी मिलने आये.. मेरे साथ बहुत देर तक खेले.. पर चाचा ये देख कर हैरान थे कि मैं इतनी आसानी से कैसे खाना खा लेता हूँ, इतनी आसानी से कैसे सो जाता हूँ.. मम्मी पापा को तंग नहीं करता.. अब आप ही चाचा को समझाओ...
Saturday, February 21, 2009
प्यार से........
रावेंद्रकुमार रवि अंकल ने मेरे लिये एक गीत लिखा.. कुछ दिन पहने ये उनके ब्लोग पर छपा था.. "आदित्य रंजन के लिए रावेंद्रकुमार रवि का एक गीत" वो ही गीत आज फिर से प्रस्तुत है
प्यार से ... ... .
मम्मी की गोदी में चढ़कर,
जब उनकी आँखों में देखा,
आँखों में था सपना!
सपने में देखा, तो देखा --
दौड़-दौड़कर, कूद-कूदकर,
खेल रहा हूँ मैं,
प्यार से
खेल रहा हूँ मैं!
मम्मी की गोदी में चढ़कर,
जब उनकी नथनी में देखा,
नथनी में था अपना!
अपने को देखा, तो देखा --
उसमें बैठा बहुत शान से,
झूल रहा हूँ मैं,
शान से
झूल रहा हूँ मैं!
Friday, February 20, 2009
एक काम तो ढंग से करते...
बडे़ चाव से पासपोर्ट बनवाया था.. स्टुडियों में फोटो खिचवाई.. नन्हें हाथों से अंगुठा लगाया.. सोचा अगर कहीं परदेश जाना हो तो पासपोर्ट तो चहिए न? अगर समीर अंकल कनाडा बुला ले तो, कैसे जाऊगां.. :).. नवम्बर में पासपोर्ट बनवाने दिया था.. इतंजार था बस इसके बन कर आने का.. कुछ दिन पहले आ भी गया.. पर खुशी की कोई बात नहीं.. पता है पासपोर्ट में मेरा और पापा का नाम ही गलत छाप दिया.. अब गलत नाम से मुझे कौन जाने देगा..
देखो न ये पासपोर्ट आफिस वाले एक काम भी ढंग से नहीं कर सकते... खैर पापा कल इसे वापस भेजेगें ठीक करवाने.. देखे कब वापस आता है?
Thursday, February 19, 2009
ओम जय जगदीश हरे........
मंगलवार की दोपहर को सोसाइटी में कीर्तन होता है.. और भी आंटी के साथ मैं भी पहुँच जाता हूँ.. पता है अब सोसाईटी में सभी मुझे जानने लगे है.. और मजे कि बात ये की वो मम्मी को नहीं पहचानते.. और मिलते है तो कहते है.."अच्छा आप हो आदि की मम्मी".. खैर कीर्तन की बात करते करते मैं कहां पहुँच गया.. अरर्रे... पहुँचने की बात पर याद आया... कि आपको एक बात तो बताई ही नहीं... ये पापा भी न... पता नहीं क्यों फोटो और विडियो का इंतजार करते रहते है.. अच्छा बात ये है कि अब मैं आगे भी चलने लगा हूँ.. हाँ हाँ बाबा crawl करने लगा हूँ.. और मारवाड़ी में कहें तो "गोडालिया" चलने लगा हुँ.. बस कुछ ही दिन हुऐ.. मेंढ़क को फुदकते देखा है कभी? वैसे ही फुदक के चलता हूँ मैं.. और कल शाम को मम्मी कह रही थी.."ये आदि out of control हो रहा है..:" अब आप ही बताओ जब चलना सीखा है तो चलुँगा न? मुझे पता है मम्मी तो यूँ ही कहती है.. मुझे उछलता देख बहुत खुश होती है.. और पापा को आवाज लगाती है..."रंजन देखो ये आपका पुतर क्या कर रहा है..?"
चलने को तैयार...
फिर भटका दिया न.. तो मैं कह रहा था कि मंगलवार को कीर्तन में गया था.. और वहां ढोलक मंजीरे सुन बहुत मजे लिये.. सबकी गोद में गया .. और खास कर उनकी जिनके हाथ में प्रसाद था.. अब कीर्तन में जायें और प्रसाद भी न खायें.. ये क्या बात हुई भला.. मैं अपना प्रसाद तो खाता ही हूँ.. और कोई दे तो भी प्रसाद का क्या मना करना..
Tuesday, February 17, 2009
पप्पु नाच नहीं सकता है!!
कल बताया था की मैनें डांस किया, हाँ मैं भी नाच सकता हूँ.. ये बात अलग है कि आपको कभी दिखाया नहीं.. पर आपसे ये बात कब तक छुपा सकता हूँ.. और अगर नहीं बताया तो आप कहोगे "पप्पु नाच नहीं सकता.. " चाचा ने नया प्लाज्मा टीवी खरीदा और रविवार को सुबह-सुबह ही हमें नया टीवी बुला लिया... और आगे.. आगे क्या.. देखिये मेरा डांस.. (अवधी 50 सेकण्ड)
जब भी बहुत खुश होता हूँ, तो ऐसे ही डांस करता हूँ!!
जब भी बहुत खुश होता हूँ, तो ऐसे ही डांस करता हूँ!!
Monday, February 16, 2009
मेरा भी वेलनटाइन डे़..
जैसे आपका सबका वेलनटाइन डे मना वैसा मेरा भी मना १४ फरवरी को ही... हाँ पर साइज के हिसाब के... छोटा सा.. १४ की शाम मैं मम्मी और पापा से साथ परी दीदी के घर गया गुड़गाँव में... दीदी के लिये एक गुलाब का फूल भी लेकर गया.. लम्बा रास्ता था.. तो मैं तो रास्ते में ही सो गया.. और उठ कर अपने "रंग" में आता इससे पहले ही पापा ने मेरे behalf से दीदी को फूल दे दिया.. धीरे-धीरे मेरी नींद खुल और में अपने रंग में था.. फिर तो डांस भी किया (कैसे? जल्द बताऊगां) और दीदी के पियानो पर भी हाथ मारे.. डिनर के लिये हम "गैलेरिया" गये.. मैं तो अपना खाना साथ ले कर गया था... वो ही खाया पर प्लेट में हाथ मारना मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है, वो भी किया..
अब खाने की टेबल पर या तो मैं बैठ सकता हूँ या फिर पापा मम्मी खाना खा सकते है.. तो फिर बारी लगी पहले पापा खाने लगे और मैं? मैं चला मम्मी के साथ बाहर.. झुला झुलने..
ऐसे बीता मेरा पहला वेलनटाइन डे!!
Sunday, February 15, 2009
इसी को खट्टा कहते है क्या?
गाजर तो अक्सर खाने को मिलती है.. मम्मी गाजर को छील और धो कर दे देती है.. और मैं उससे अपने दांतो की खुजली मिटाता रहता हूँ.. गाजर से खेलने को खूब मिलता है, पर जीभ और पेट के लिये कुछ खास नहीं..
कल अपने पैराम्बुलेटर* में लेटा था, गाजर के मजे ले रहा था.. कि मम्मी ने एक टमाटर का टुकड़ा भी पकड़ा दिया.. टमाटर का टुकडा मेरे लिये अपेक्षाकृत नया अनुभव था.. टमाटर पर पकड़ भी अच्छी बन रही थी और खा भी पा रहा था.. टमाटर के स्वादानुसार (खट्टे) मेरे चहरे के भाव भी बदल रहे थे..
काफी देर टमाटर ने साथ दिया लेकिन आखिर में फिसल कर गिर गया.. पर चिन्ता कि कोई बात नहीं थी.. क्यों? क्योकि मेरे दुसरे हाथ में गाजर जो थी.. और फिर गाजर कुतरने लगा..
गाजर और टमाटर का स्वाद लेते बहुत सारी फोटो यहाँ देख सकते है..
कल वेलनटाईन डे था.. थोडा़ बहुत मैने भी मनाया, कहां, कैसे... ये सभी अगली पोस्ट में..
* पैराम्बुलेटर - आप अंदाजा लगा सकते है, ये नाम मेरे प्राम को किसने दिया? अरे ज्ञान अंकल से सिवा और
कौन दे सकता है ऐसा नया नाम!!
update 2PM- ज्ञान अंकल और ताऊ की सलाहनुसार तस्विरें सिधी कर दी है..
कल अपने पैराम्बुलेटर* में लेटा था, गाजर के मजे ले रहा था.. कि मम्मी ने एक टमाटर का टुकड़ा भी पकड़ा दिया.. टमाटर का टुकडा मेरे लिये अपेक्षाकृत नया अनुभव था.. टमाटर पर पकड़ भी अच्छी बन रही थी और खा भी पा रहा था.. टमाटर के स्वादानुसार (खट्टे) मेरे चहरे के भाव भी बदल रहे थे..
काफी देर टमाटर ने साथ दिया लेकिन आखिर में फिसल कर गिर गया.. पर चिन्ता कि कोई बात नहीं थी.. क्यों? क्योकि मेरे दुसरे हाथ में गाजर जो थी.. और फिर गाजर कुतरने लगा..
गाजर और टमाटर का स्वाद लेते बहुत सारी फोटो यहाँ देख सकते है..
कल वेलनटाईन डे था.. थोडा़ बहुत मैने भी मनाया, कहां, कैसे... ये सभी अगली पोस्ट में..
* पैराम्बुलेटर - आप अंदाजा लगा सकते है, ये नाम मेरे प्राम को किसने दिया? अरे ज्ञान अंकल से सिवा और
कौन दे सकता है ऐसा नया नाम!!
update 2PM- ज्ञान अंकल और ताऊ की सलाहनुसार तस्विरें सिधी कर दी है..
Saturday, February 14, 2009
दे ताली - विडियो में
पापा के साथ ताली बजाने का किस्सा तो आपको बता दिया था.... ताली बजाने के ये पल पापा खुब ऐंजोय करते है.. ऐसे ही कल पापा के साथ ताली बजाने के मजे लिये.. और आपके लिये लाया हूँ ४५ सेकण्ड का ये विडियो...
आया न मजा आपको भी..
प्रयण पर्व की शुभकामनाऐं!!
आया न मजा आपको भी..
प्रयण पर्व की शुभकामनाऐं!!
Friday, February 13, 2009
एक और..
दो तो दिसंबर में ही आ गये थे.. बाकि का इंतजार तब से था..अब आयेंगे, अब आयेंगे.. अरे भाई, आखिर कब आयेंगे ये... कोई कितना इंतजार करे... एक तो कब से झांक रहा था.. पर आ नहीं रहा था.. अरे आप आओ तो कुछ और काम करें.. आपको पता नहीं मुझे आपकी कमी कितनी खलती है... आपको कितना मिस करता हूँ.. और आपके इंतजार में क्या-क्या कर रहा हुँ मैं.. अरे अब तो बहुत सुरसरी मच रही है.. आओ न, आ जाओ न.. कोई समय तो दिया नहीं... अरे आपके न होने से कितने काम रुक रहे है पता है आपको?
आया समझ, किसका इंतजार था मुझे? अरे मुझे इंतजार है अपने दांतो का और कल मेरे श्रीमुख में तीसरे महानुभव तशरिफ लाये... इस बार ऊपर वाला दाँत.. अरे ऐसे समझाना मुश्किल होगा आप तो ये 'dental map' देख लो...
आया समझ, किसका इंतजार था मुझे? अरे मुझे इंतजार है अपने दांतो का और कल मेरे श्रीमुख में तीसरे महानुभव तशरिफ लाये... इस बार ऊपर वाला दाँत.. अरे ऐसे समझाना मुश्किल होगा आप तो ये 'dental map' देख लो...
इतने दिनों से बेचारे निचले वाले दांत अकेले थे, अब उनका एक साथी और आ गया....इससे मेरी पकड़ और भी मजबुत होगी न? ;-)).
Thursday, February 12, 2009
Tuesday, February 10, 2009
रंग बिरंगे गुब्बारे..
कल शाम मम्मी की दवा लेने पापा के साथ मार्केट गया.... गाड़ी पार्क कर सीधे पहुँचे दवा की दुकान, मम्मी की दवा ली.. फिर दुसरी दुकान से घर का कुछ समान.. यहाँ तक तो सब ठीक था.. मैं पापा की गोद में सवार सभी चीजों को टुकुर टुकुर देखता रहा.. अचानक मेरी नजर गुब्बारों पर पड़ी.. रंग बिरंगे गुब्बारों ने मेरा ध्यान खींचा और मैने "हूँ हूँ" कर पापा से अपनी फरमाईश रख दी... पापा भी तुरंत पिघल गये और गुब्बारे वाले के पास चले गये.. मैंने गुब्बारों को छू कर देखा.. और पापा ने मेरे लिये गुब्बारे खरीद लिये, पहली बार.. उनको हाथ में लेकर मैं बहुत खुश था.. बस इंतजार था घर आकर उनके साथ खेलने का.. खेला तो खुब पर पापा ने गुब्बारा खाने नहीं दिया..
भा गई न मेरी बातें ! बन जाओ मेरे सखा.. यहाँ चटका लगा कर!!
ना आदि, गुब्बारा नहीं खाते..
भा गई न मेरी बातें ! बन जाओ मेरे सखा.. यहाँ चटका लगा कर!!
Monday, February 9, 2009
आ गया मेरा रेडूला
वाकर का आइडिया फेल होते ही रतन अंकल ने कहा ".....चलना भी अपने आप सीख जावोगे वाकर वुकर की जरुरत ही नही पड़ेगी, हम भी तो बिना वाकर ही चलना सीखे थे उस ज़माने वाकर की जगह रेडूला होता था जो गांव का खाती लकड़ी का बना कर देता था उसमे पैरों पर कोई साइड इफेक्ट भी नही पड़ता था ! रेडूला शायद तुम्हारे जोधपुर में भी मिल सकता है |" रेडूला कहते ही पापा को भी अपने समय का गाडो़ला याद आ गया.. फिर सोच शुरु हो गई कि इसकी व्यवस्था कैसे की जाये.. और कुछ समझ में न आते देख पापा ने जोधपुर में दादा को फोन कर दिया, उसी दिन शाम को चार बजे.. जब शाम के छ: बजे किसी और काम से पुनः फोन किया तो दादी ने बताया कि मेरा ’रेडूला’ या कहें तो ’गाडो़ला’ आ चुका है और दादा उस पर कलर कर रहे है.. इतनी जल्दी.... अरे अब आपको क्या बताऊं मेरे लिये तो सभी हाजिर रहते है, और मेरे सभी काम तुरंत होते है.. खैर अब ’गाड़ोला’ जोधपुर तक तो पहुँच गया.. पर सवाल ये था कि ये मुझ तक कैसे और कब पहुचेगा.. अभी तो जोधपुर जाने का या वहां से किसी के आने का कोई कार्यक्रम ही नहीं है.. कुछ दिन तो ऐसे ही सोचने में चले गये.. आखिर में पापा ने प्रकाश अंकल को फोन किया यदि उनका कोई परीचित आ रहा हो तो... प्रकाश अंकल रेल्वे में है.. उनके परीचित तो रोज जोधपुर से आते रहते है..उन्होने शनिवार को मण्डोर एक्सप्रेस में गाडो़ला रखवा दिया.. अब बाकी ड़्यूटी तो पापा की थी..पापा कल सवेरे साढे़ पाँच बजे उठ गये और चल दिये पुरानी दिल्ली रेल्वे स्टेशन.. वापस आये साढ़े आठ बजे तो उनके हाथ में था मेरा ’गाड़ोला’.. नई चीज आते ही मैं उसके परिक्षण निरिक्षण में व्यस्त हो गया... और शुरू हो गई मेरी ट्रेनिगं.. और ये रहा मेरी ट्रेनिग का पहला दिन...
गाडोले के साथ और फोटो मेरी फोटो गैलेरी में यहां देखें...
गाडोले के साथ और फोटो मेरी फोटो गैलेरी में यहां देखें...
Sunday, February 8, 2009
ताऊ के बाद आदि की भी पहेली..
मम्मी जब फुरसत में होती है तो मुझे भी बहुत शरारतें करने देती है, पहले सुज़ी खाने को दी और कल.. कल पोहा.. मम्मी ने एक प्लेट में पोहा दे कर मुझे बैठा दिया खुद से खाने के लिये.. मम्मी कहती है ऐसे मैं खाना सिखुगां और खेल खेल में मेरी खाने में रुची बनेगी.. पर मम्मी को पता नहीं.. (नहीं, पता तो है, पर जानबुझ कर मुझे ऐसा करने देती है).. की मेरी दिलचस्पी पोहा खाने में कम, उससे खेलने में ज्यादा थी.. मैं वास्तव में कर क्या रहा था..ये ही है आज की पहेली और ये भी ताऊ की पहेली जैसी ही दिलचस्प है.. लेकिन मैं आपको विकल्प भी दे रहा हूँ.. ये चित्र देखिये और बताइये कि मैं क्या कर रहा था.. और आपके विकल्प है १) मैं पोहा खा रहा था २) मैं पोहे से खेल रहा था..३) मैं खेलते खेलते पोहा खा रहा था ४) मैं पोहा खाते खाते खेल रहा था..
और हिंट के लिये आप ये slide show देख सकतें है.. तो देर किस बात कि जल्दी से अपना उत्तर लॉक कर दें..
और हिंट के लिये आप ये slide show देख सकतें है.. तो देर किस बात कि जल्दी से अपना उत्तर लॉक कर दें..
Friday, February 6, 2009
ये पौधे, ये पत्ते, ये पेड़, ये हवाऐं...
कल दोपहर की सैर करवाते करवाते पुखराज भैया मेरा प्राम पौधों की क्यारी में ले गये.. मुझे पौधों, पत्तियों को करीब से महसुस करवाने.. कुछ पत्तियों को छू कर देखा.. और धूप का मजा़ तो था ही... "ये पौधे, ये पत्ते, ये पेड़, ये हवाऐं....मन को लुभाऐ...."
भा गई न मेरी बातें ! बन जाओ मेरे सखा.. यहाँ चटका लगा कर!!
भा गई न मेरी बातें ! बन जाओ मेरे सखा.. यहाँ चटका लगा कर!!
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