दिल्ली केंट रेल्वे स्टेशन परकल मैं पहली बार छुक-छुक गाड़ी में बैठा... दीपावली पर दादा-दादी के पास जा रहा था.. पर पापा को देखो उन्होंने मेरी टिकट ही नहीं बुक करवाई.. कहते है कि ट्रेन में बच्चों की टिकट नहीं होती. अब आप ही बताइये
कि बिना टिकट भी कोई ट्रेन में जाता है भला? ख़ैर !मैं बिना टिकट ही स्टेशन की ओर चला.. स्टेशन तक आना कोई नई बात नहीं थी.. वहां तो एक बार पहने भी आ चुका हुँ, पर इस बार मैं छुक-छुक गाड़ी में बैठने वाला था.. स्टेशन पर मैंने बहुत मस्ती की.. जानने वाले से भी और अनजानो से भी.. अनजाने है तो क्या बात करुंगा तभी तो जान पाऊंगा ..
ट्रेन (२४६१ दिल्ली - जोधपुर - मण्डोर एक्सप्रेस) आई पूरी ३० मिनट लेट..हम सही जगह पर ही खड़े थे.. और जल्दी से ट्रेन में चढ़ गये.. अरे! इसमें तो डिब्बे नई डिज़ाइन वाले थे बिल्कुल नये... लेकिन ट्रेन खचाखच भरी हुई थी.... और मेरे लिए कोई सीट भी नहीं थी..भूख भी लग रही थी.. थो़डी़ देर तो देखा फिर तो मैं दूध मांगने लग गया.. दूध पीते-पीते ही मैं मम्मी की गोदी में सो गया...
आस पास में बैठे सभी को लग रहा था कि बच्चा है.. रात में सोने नहीं देगा.. disturb करेगा.. पर वह मुझे नहीं जानते थे...मैं तो disturb करता ही नहीं हूँ.. मैं तो ट्रेन के झूले खा के सो रहा था.. एक बार सोया तो फिर सुबह सात बजे ही उठा..
फिर तो मैं पूरे रंग में था.. सभी के साथ खूब खेला.. हँसा और चिल्लाया भी..
ट्रेन जोधपुर पहुँची 1 घंटा लेट.. दादा स्टेशन पर मेरा इन्तजार ही कर रहे थे.... दादा मुझे लेकर घर आ गये.. और मुझे पूरा घर दिखाया... और biscuit का breakfast भी किया..
अब तो आप जान ही चुकें है कि मैं जोधपुर आ गया हूँ.. और आपको यहीं से जोधपुर के बारे बताऊंगा..
"आप सभी को दीपावली की अग्रिम शुभकामनाएं"