Saturday, October 31, 2009

त्या....

लुका छिपी मेरा प्रिय खेल है.. आप कहीं भी छुप जाओ.. और बुलाओ आदि "मैं कहाँ हुं और आदि तैयार आपको ढूढने के लिए.. और फिर मिलाने पर ख़ुशी से "त्या...." ढूढने में मजा है ही पर हमेशा में ही थोड़े ढूढता रहूंगा... मौका मिलने पर मैं भी छुप जाउगां और फिर आपकी बारी होगी ढूढने की..

तो एक बार में छुप गया अपनी हट में..
और बाकी का किस्सा इन तस्वीरों में...


खिड़की से मम्मी झांक रही है..


और ये मेरा प्यारा सा "त्या...."


फिर छुपाने की बारी...


और ये तांका झांकी..


और फिर प्यारा सा.. "त्या...."


देखें अब कौन आ रहा हे?


त्या........


बस भाई बहुत हुआ.. कल मिलते हें..


(तस्वीरें १५ अगस्त की)
पसंद आया? खेलोगे मेरे साथ.. त्या..

Friday, October 30, 2009

पापा और आदि

पापा और आदि



१६ अक्टुबर को.. बडे़ से मैदान मे.. खेल रहे थे..

पसंद आया..

Thursday, October 29, 2009

दीपावली की यादें तस्वीरों में...

जोधपुर में मनाई दीपावली की यादें तस्वीरों  में...











थोडा सा प्रदुषण..


कैसा लगा?

Tuesday, October 27, 2009

आदि कि डुगडुगी..

कुछ दिनों में मैं १८ माह का हो जाऊंगा... कल कि ही बात लगती है.. वक्त कैसे निकल जाता है, पता ही नहीं चलता.. देखें पापा ने कितने दिनों से एक भी पोस्ट नहीं लिखी.. आपको ये भी नहीं बताया कि मैं जोधपुर से दिल्ली आ गया हूँ.. और ये भी नहीं बताया कि मैने दिपावली कैसे मनाई.. और ये भी नहीं बताया कि मैने जोधपुर में "काऊ" देखी.. और ये भी नहीं बताया कि मेरे कितने सारे दांत आ गये.. और ये भी नहीं बताया कि मुझे जोधपुर में चाचा ने एक मोटर साईकल दी थी.. और ये भी नहीं बताता कि ऋषभ भैया का मुंडन हो गया.. और भैया बिल्कुल झकास लग रहे है.. अरे बाप से कितनी बाते नहीं बताई.. चलो आज मैं बता ही देता हूँ..
  • दिपावली को मैनें खुब अनार जलाये.. आकाश में जाकर रंगबिरंगी रोशनी करने वाले राकेट मुझे बेहद पसंद आये... और मैं "ब्भम" बोलना सीख गया.. गिर जाऊ तो भी "ब्भम" और पटाखा जले तो भी "ब्भम".. लेकिन इस मजे में मैंने दीपक पर अंगुली लगा दी तो सीधे हाथ की एक अंगुली में फफोला हो गया.. दो दिन दवा पी और मलहम लगाया तो ठीक हुआ.. 
  • जोधपुर में मैंने काऊ भी देखी.. पहले तो मैं उसे भी "भौ-भौ" ही समझा पर फिर मम्मी ने मुझे समझाया की ये "काऊ" है.. फिर क्या है "काऊ" या "गाय" देखना मेरा प्रिय शौक बन गया.. और जब भी घर में मन नहीं लगता तो पापा या चाचा की गोदी में सवार होकर चला जाता गाय देखने..
  • ऋषभ भैया का झडोला  16 तारिख़ को हुआ था.. झडोला के समय तो में सो रहा था पर बाद में हमने खूब मस्ती की..



आगे आगे मैं चला पीछे ऋषभ भैया...
  • पता है पापा जकार्ता में है.. पापा ने मेरे लिए एक डुगडुगी खरीदी है.. पापा ने मुझे विडियो काल कर डुगडुगी दिखाई.. और मैं उसे पकड़ने के लिए बैचेन हो गया.. बार बार कंप्यूटर की स्क्रीन पर हाथ मार डुगडुगी पकड़ने की कोशिश करता रहा पर ..:) आपके पास कोई तरिका हो तो बताओ.. 



Sunday, October 11, 2009

छुक छुक छुक छुक रेल चली....

छुक छुक छुक छुक रेल चली.... आदि जी की रेल चली....

ये नया खेल सिखा है.. दिल्ली में तो मेरी रेल में एक या दो डिब्बे ही जुड़ते थे..पर अब जोधपुर में तो बहुत बड़ी ट्रेन बनती है.... कल शाम मेरे साथ खेलेने के लिये प्रितु दीदी सहित सभी दोस्त आ गये.. और हमने बहुत बड़ी रेल बनाई..

देखे मेरी रेल के कुछ फोटो..






आज ऋषभ भैया का जन्मदिन है.. शाम को पार्टी है.. खुब मौज होगी..



"ऋषभ भैया को जन्मदिन कि शुभकामनाऐं!!"

सुचना

दिपावली मनाने दादा दादी के पास कल जोधपुर आ गया हूँ.. तो दिपावली तक वहीं मस्ती होगी..
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