अर्पित चाचा के हार्दिक इच्छा पर आखिर गुरूवार (7 जनवरी) को मेहरानगढ़ दुर्ग जाने का कार्यक्रम बन ही गया.. तुरंत ही चर्मी और बंटी भुआ को फोन कर उन्हें भी साथ ले लिया... और किले की चढाई शुरू कर दी....
किले की घाटी में चढाई और उतराई का खूब मजा लिया..
इस किले के झरोखे बहुत सुन्दर है..
और इस झरोखे के निचे.. मम्मू, बाबा और मैं...
और ये हमारी पूरी टीम...
किले में बहुत सारी तोपें भी रखी है...
और इस पर चढ़कर मेरा मासूम सवाल.."बाबा ये कौनसी गाड़ी है?"
ये है घंटाघर...
मंदिर के पीछे झरोखे में..
आदि बेटा तुमने फिर से जोधपुर याद दिला दिया ! बड़ी सुन्दर तस्वीरे हैं ! चढाई पर थके तो नहीं थे ?
ReplyDeleteहमने भी बहुत बार देखा है ये किला :)
ReplyDeleteवाह ! कोई समय था कि मेरी सुबह की सैर इसके मेन गेट तक हो जाती थी.
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