काळॆ में बियाणी जी री दुकान गयो हो... कई केवो थें, बियाणी जी री दुकान कौनी जाणों. अरे जाणता व्होला.. किणी और नाम सुं.. हाँ थे उने ’बिग बजा़र’ केवो.. जाण गया? तो आगे सुणों..
कई के अगले मईने (महीने) पिकूं चाचा रो ब्यांव (शादी) है.... ने मैं सब जणा जोधपुर जांवाला.. तो ब्याव से वास्ते नया कपड़ा तो लेवणा पडे़ नी.. और दिल्ली में ठंड भी घणी पड़ री है.. एक-आध स्वेटर ई ले लेवां तो ठीक इज रई.. तो आ खरीददारी करण वास्ते इज में काळे बियाणी जी री दुकान गयो..
आजकल बारे जाउण वास्ते खास तैयारियां करणी पड़े... सुबे इज प्रोग्राम बणा दियो.. मम्मी म्हने स्नान बीजी करान सुवाण दियो.. ताकी मैं आराम सूं घूम सकूं..ज्युंई (ज्योंही) में एक बजीया उठीओं.. पापा मम्मी मने ले न रवाना हो ग्या.. और मारो तो दोपारी रो वेळु (भोजन) भी गाड़ी में इज हुयों.. ज्यादा की नहीं बस.. केळा रो शेक पी लियो..
थोड़ी देर में तो म्हें उठे पुग ग्या.. अरे आ तो कोई नई जग्या कौनी थी.. एक बार पेली भी आन गया...उठे पहुचता ई पापा री गाड़ी ऊ उतर न खुद री गाड़ी (प्राम) में बैठ गया.. ने बज़ार घूमण लागा... दुकान में घुसता ई सीदा पोंच (पहुँच) गया टाबरा (बच्चों) रे सेक्शन में.. म्हारी गाड़ी साईड में लगार पापा मम्मी म्हारा कपड़ा ढुढण लाग्या.. खासी देर लगा न मारा कपडा पसंद कर लाया.. पापा-मम्मी भी आपरे जरुरत तो सामान खरीद लियों.. म्हने गाड़ी मे रमतो (खेलते) देख.. आऊण-जावण वाला लोग ई मारे साथे बाता कर रमण लाग्या.. ढाई तीन घण्टा फिर-फिरा न पाछा (वापस) घरे आया.. थाक (थकान) तो ग्या पर मजो घणों (बहुत) आयों..
(हम मुलत: जोधपुर राजस्थान से है.. और बचपन में राजस्थानी (मारवाड़ी) ही बोला करते थे.. घर में दादी, नानी अभी भी मारवाड़ी ही बोलती हैं.. लेकिन हमारी जुबान पर धीरे-धीरे हिन्दी स्थापित हो गई.. अगर आदि जोधपुर में रहता तो थोड़ी बहुत मारवाड़ी सीख ही जाता.. पर दिल्ली में? लेकिन हम कोशिश करेंगे की वो अन्य भाषाओं के साथ मारवाड़ी भी सीखे.. जब वो बडा़ होगा और ये पोस्ट पढे़गा तो शायद उसे इस मीठी बोली का स्वाद पता चलेगा.. इसी उम्मीद से ये पोस्ट हिन्दी मिश्रीत मारवाड़ी में- रंजन)
ranjan is blog kae liyae aap kai jitni taarif ki jaaye kam haen
ReplyDeleteभायला थारो नाम तो नी बतायों...कंई नानूङो कैवे है कईं थनै
ReplyDeleteमारवाड़ी में लिखेड़ो देख हरख हुयो. ई भासा म्हं ही चालू रेवण दिज्यो.
ReplyDeleteनानुडा आदि, आ आपाणी मातर-भाषा जरुर सीख लीजे | और जोधपुर री मीठी भाषा तो म न घणी चोखी लागह है |
ReplyDeleteबहुत सुंदर लगी ओर समझ भी आ गई आप की मारबाडी, हम सब को अपने प्रदेश की भाषा सब से मिठ्ठी लगती है, कारण हम बचपन से ही उस मै पले होते है, ओर वो भाषा हमारी रग रग मै समा जाती है.
ReplyDeleteआदि चलो अब चाचा की शादी की फ़ोटो भी दिखाना.
प्यार
आदि अगर मारवाडी सीखी तो बहुत बढ़िया रेवेला.. मारे तो ख़ुद रे घर रा सब बच्चा मारवाडी इज बोले है.. हालाँकि हिन्दी भी अच्छी बोले.. पर मारे भइया रो केवंनो है की बच्चा ने हिन्दी रे साथै साथै मारवाडी भी सीखनी चइजे.. आज तो मजो आई गियो आदि ने मारवाडी बोलते देख ने.. वैसे मैं ख़ुद भी बहुत टाइम बाद मारवादी बोली हु..
ReplyDeleteआदि तो मारवाडी सीख जाई पण आदि री मम्मी ने पेली सीखावनी पड़ीं नी....
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