Monday, June 29, 2009

क्या ढुढ़ कर लाया आदि?

खेलने के लिये नई चीजें चाहिये.. पहुँच गया कम्प्युटर टेबल पर...वहाँ तो तारों का पूरा झाल था.. 


मुझे तो ये  पसंद आया..कैमरे का कवर.. कैमरा नहीं था तो कोई रोकने वाला भी नहीं..
और लगे हाथों ये तार भी उठा लिया.. कभी काम आयेगा..


अब  मैं मस्त. ओर क्या चाहिये... मेरे लिये तो ये ही बहुत.. थोड़ी देर के लिये.. खोलो बन्द करो... और एसे ही टाईम पास करो...


आज इतना ही.. फिर मिलते है...





शरारत ऑफ द डे
आज शरारत ऑफ द डे पर मेहरबानी 

Sunday, June 28, 2009

फिर न कहना मैंने याद नहीं दिलाया

शरारत ऑफ द डे
कल दिन में जब बहुत धमाचौकड़ी मचा ली तो मम्मी ने सोचा अब आदि को सुला दिया जाये... ठीक है साहब.. हम क्या करते चले गये मम्मी के साथ कमरे में... और मेरे सोने के लिये मम्मी ने माहौल भी बना दिया लाइट बंद कर दी, AC चला कर कमरा ठंडा कर दिया... और लोरी गा कर मुझे सुलाने लगी... दस मिनिट बाद कमरे का दरवाजा खुला.. पापा और पल्लवी मासी को लगा की मम्मी बाहर आ गई.. पर ये क्या.. कमरे से तो हसंते हुऐ मैं निकल रहा था...पल्लवी मासी बोली "आदि मम्मी को सुला कर आ गये?"  

आज फिर से पोलियो रविवार है..  और ५ साल से छोटे सभी बच्चों को पोलियो दवा की दो बुंद पिलाई जानी है.. जल्द ही पहुँच जाइये.. आज.. अभी... कल तो आप फिर से व्यस्त हो जायेगें न? और जानकारी के लिये ये पोस्ट भी पढ़ सकते हैं..
आप जरा जा कर आइये.. तब तक मैं थोडा पानी पी लेता हूँ..





विशेष सुचना
मेरे प्यारे अर्पित चाचा का चयन "कलर" टीवी पर कल प्रसारित होने वाले शो "छोटे मियां" में हो गया है.. :) पहली कड़ी का प्रसारण "कलर टीवी" पर आज (रविवार २८ जुन) रात आठ बजे होगा..  जरुर देखना.. 


  अर्पित चाचा से संबंधीत पोस्ट  यहाँ , यहाँ, यहाँ  यहाँ  है... और उनका ब्लोग यहाँ हैं..

Saturday, June 27, 2009

आदित्य - मुरमुरे खालो मुरमुरे

मुरमुरे बहुत पसन्द है.. खा भी सकते है और खेल भी सकते हैं.. देखे इस चित्रकथा में.. आप भी खा सकते हैं






शरारत ऑफ द डे
वाशबेसिन जाता तो हाथ धोने हूँ  पर वहाँ से कभी खाली हाथ नहीं लैटता.. कभी टुथ ब्रश, कभी टंग क्लिनर या कंघा जो मिल जाये.. परसो लम्बा हाथ मारा और टुथ पेस्ट  उठाकर ले  आया.. पापा वापस लेने चाह रहे थे तो ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया.. फिर पापा क्या कर सकते थे.. अपनी तस्ल्ली के लिये उसका ढ़क्कन टाइट बंद कर मुझे पकड़ा दिया.. क्या उनको पता नहीं कि अब मैं बड़ा हो गया हूँ? मैने भी मौका पाकर उसका ढक्कन निकाल लिया और फर्श को अच्छे से मंजन करा दिया.. फिर तो टुथपेस्ट मेरे से छिनना ही था..:)  

Thursday, June 25, 2009

दौड़ आदि दौड़

भागने में बड़ा मजा आता है.. और ये मजा और भी बढ़ जाता है यदि कोई पीछे भाग रहा हो... कुछ कदम भाग कर मुड़ कर देखना.. और कोई पिछे हो तो दुगनी ताकत से दौडना..  गिरना, सम्भला और फिर उठ कर दौड़ना.. देखे ३० सेकण्ड के इस विडियो में..










शरारत ऑफ द डे
तीन में से तीन... फोन हाथ में आते ही मैं दो काम करता हूँ पहला तो कान पर लगा कर बात करने की स्टाईल मारना और दुसरा नंबर डायल करना..  और मेरे मिस  कॉल का सबसे ज्यादा शिकार होती है "शशि आंटी".. खैर कल शाम जब पापा ऑफिस से आये तो मैं फोन से खेलने लगा.. सबसे पहले उनका ऑफिस का फोन उठाया और डायल किया घर का नंबर.. पापा फोन उठाने लगे तो पता चला कि ये तो आदि कि शरारत है.. उन्होने मेरे हाथ से फोन ले लिया... कोई बात नहीं मैने तुरंत ही दुसरा मोबाइल लिया और फिर से घर का ही नंबर डायल कर दिया.. पापा फिर हैरान... उन्होने वो फोन भी ले लिया.. पर मैं इतने से कहां मानने वाला था.. मैने घर का फोन (fixed line) लिया और इस बार मम्मी का नम्बर डायल कर दिया... उधर से मम्मी की  आवाज सुन पापा हैरान हो गये.. ये आदि आज सारे नंबर सही कैसे लगा रहा है?  आप बता सकते हैं? वैसे ये सभी नंबर लास्ट डायल नहीं थे.. और न ही स्पिड डायल.. 

Wednesday, June 24, 2009

आदित्य - बिट्टु मेरी नई दोस्त

एक नई दोस्त बनी है.. प्यारी बिट्टु.. बिट्टु भी मेरी तरह शशी आंटी के घर आने लगी है.. और हम पुरे दिन धमाचौकडी़ करते है.. ये देखे प्यारी बिट्टु.. बिट्टु अभी ६ माह की है और भाग नहीं सकती... केवल पेट के बल सोती है..


मेरे लिये वो किसी खिलौने से कम नहीं... जैसे दुसरे खिलौनों से खेलता हूँ वैसे ही बिट्टु के साथ भी..

पता नहीं अंकल आंटी क्यों  बिट्टु को मुझसे बचाते रहते हैं.. मैं तो उसे पकडने की कोशिश ही करता हूँ.. कभी हाथ, कभी पैर.. और कभी मुँह..

हम दोनों खुब मस्ती करते है.. बिट्टु के खिलौनो से मैं भी खेलता  हूँ... वैसे आप "भी" की जगह "ही" पढे़ तो भी ठीक है...
आंटी जिस कमरे में बिट्टु को ले जाती है मैं भी उसके पिछे हो लेता हूँ.. ना उसको सोने देता हूँ न खुद ही सोता हूँ..  
बिट्टु के आने से एक प्यारा दोस्त मिल गया है.. मेरी साईज का.. है न?

कैसी लगी मेरी नई दोस्त?



शरारत ऑफ द डे
अंकल के पिछे पिछे किचन में चला गया.. और अपनी नकली हंसी से उन्हे सम्मोहित करने लगा.. अंकल भी मुझे हँसता देख खुश हो गये और मुझसे बात करने लगे.. फिर अचानक उनका ध्यान मेरे से हटा और मैने पलक झपकते  ही टोमेटो केचअप की बोतल उठा ली..... बोलत एक लिटर वाली थी और पूरी भरी हुई थी.. इतनी भारी बोतल मुझसे कैसे उठती... और.. और.. और.. धड़ाम...... ये क्या बोतल गिर कर टुकडे़ टुकडे हो गई.. अंकल ने पलट कर देखा तो मैं हंस रहा था.. आदि इतनी शरारत चोट लग जाती तो?

Tuesday, June 23, 2009

आदित्य डिसीज़न आऊट!!!

पापा ने मुझे आऊट करना सिखाया है.. देखो एसे देतें है आऊट..






शरारत ऑफ द डे
कुर्सी और सोफा पर चढ़ना मेरा शगल है.. पर वैसे नहीं जैसे आप सभी चढ़ते है.. ओह सॉरी आपको थोड़ी चढ़ना पड़ता होगा.. आपको पता है मैं कैसे चढ़ता हूँ.. कुर्सी का हत्था पकड़ कर उसके साईड सपोर्ट पर दोनों पाँव रख दिये.. अब चढ़ तो गया.. पर न तो और ऊपर जा सकता था न ही नीचे.. कहां फस गया.. और कोई तरीका नहीं सुझा तो ब्रह्मास्त्र चला दिया..  उसके बाद तो सुरक्षित लैंड करवा लिया गया.. आदि बच्चु एसी शरारत करते हो कहीं गिर गये तो?

Monday, June 22, 2009

आदित्य - सफाई पसंद..

मैं नकल करने में उस्ताद हूँ.. कान की बड़ इस्तेमाल  करते देखा तो बड़ कान में.. टुथ ब्रश इस्तेमाल करते देखा तो वो भी.. अब बारी आई झाडु की.. वैसे तो ये टेरेस पर रखा होता है और मेरी पकड़ में नहीं आता पर कुछ दिनों से चिडिया झाडु के तिनके निकालने लगी तो ये घर के अन्दर आ गया.. छोटी चिडिया से तो बच गया पर... अब मैं क्या बताऊ आप देखिये ये मजेदार चित्र कथा..





Sunday, June 21, 2009

आदित्य - आज अंगुली थाम के तेरी : फादर्स डे पर विशेष

आज फादर्स डे है.... और मैं याद कर रहा हूँ अपने ’फादर’ होने की मीठी यादें..  वक्त कैसे निकल गया पता ही नहीं चला.. कुछ दिनों में ’आदि’ १४ महीनों का हो जायेगा.. ’आदि’ अब चलने लगा है और कुछ दिनों बाद "पापा पापा" कहने लगेगा... फादर्स डे पर ’आदि’ और ’आदि’ के ’फादर’ की तस्विरों का ये विडियो... एक प्यारे से गीत के साथ ...








(मूल गाने के बोल पढ़ने के लिये यहां चटका लगाये, और मूल विडियो देखने के लिये यहां )

Saturday, June 20, 2009

आदित्य - कैसे खा लेते है इतना खट्टा आलुबुखारा

मम्मी कहती है आदि को हर तरह का फल खाना चाहिये... तो एक दिन वो बाजार से आलुबुखारा ले आई.. कितना सुन्दर लग रहा था.. बिल्कुल मेरी बॉल जैसा.. लेकिन ये क्या.. जरा सा दबाया तो फिस्स हो गया..


अच्छा तो ये बॉल नहीं कुछ खाने की चीज़ लगती है.. चलो एक ट्राई मारते हैं...

अरे.. एसा खट्टा!! कैसे खा लेते है आप?

पर है मजेदार..समझ नहीं आ रहा खांऊ या न खांऊ..


खट्टा भी और साथ में चहरे पर मुस्कान भी.. 




Friday, June 19, 2009

आदित्य - ये शेर खुद पिंजरे में आता है...

कभी देखा है एसा शेर जो खुद पिंजरे में आता हो? ये शेर अपनी मर्जी से पिंजरे में आता है और अपनी मर्जी से बाहर भी निकलता है..
शशि आंटी* के घर पर एक बड़ा सा स्टूल है.. बिल्कुल मेरे साईज का.... और घूमते घूमते मुझे इसमें जाना बहुत पसंद है..  और कल तो बहाना भी मिल गया... मेरी बॉल उसमें चली गई थी न?
और इसमें बॉल से खेलने का मजा़ और है... कितना भी मारो वहीं की वहीं रहती है.... पिछे नहीं घूमता पड़ता...   


और ये डण्डा पकड़ खो खो कर सबको डराने के भी मजे है....

बहुत हुआ भाई अब तो बाहर आ जाओ....

लो आ गये!! अपनी मर्जी के मालिक..




(*शशि आंटी - पापा मम्मी जब ऑफिस जाते है तो मैं इनके पास ही रहता हूँ)

Thursday, June 18, 2009

आदित्य - कुछ तो अपनी साईज का ख्याल रख प्यारे!!

कल मेरे खिलौने निकालते हुऐ मम्मी मे ये प्ले हाऊस निकाला... और इससे बनी एक प्यारी सी ’हट’... पर मेरी नजर ’हट’ पर कम इसके डिब्बे पर ज्यादा थी...



और जैसे ही मौका मिला मैं इस डिब्बे को लेकर रफुचक्कर होने की कोशिश करने लगा...



हालाकिं इसकी साईज मुझसे डबल है, पर क्या फर्क पड़ता है.. ताकत तो मुझमें ज्यादा है न

ये देखो!! है न मुझसे बड़ा? और जरा एक नज़र पिछे लगी दिवार घड़ी पर डालो.. सही पहचाना आपने १० बजे हैं... पर ये दिन के नहीं रात के दस बजे है!!! हा हा हा..

और इसे ले जाकर क्या किया.. आप देखिये...  

ये प्यारी सी ’हट’ (फोटो में दिख रही है रेड कलर कि) रितु आंटी  लाई थी मेरे लिये.. मेरा जन्म दिन का उपहार..
थेंक्यु रितु आंटी!!




Wednesday, June 17, 2009

क्यों मेरे खिलौनों इतने उपर रख देते हो?

ये देखो न पापा मम्मी मेरे खिलौने कहाँ रख देते है? मेरा हाथ भी नहीं पहुँच सकता है इतना ऊपर तक... कितनी कोशिश करनी पड़ती है और ताकत लगानी पड़ती है..  अब पापा मम्मी तो संमझते नहीं न?


और एसे बात नहीं बने तो पंजे पर खडे़ होकर भी कोशीश करनी  पड़ती है, और साथ में एक चीख... (आंईईईई............) अगर कोई सुन ले...

ना सुने तो खुद ही चढ़ लो...आखिर है ही कितना ऊपर..:)
वैसे आपका ये भ्रम दूर कर दूँ कि मेरी रुची खिलौनों में है.... वो तो एक बहाना है... वहां रखे  ताले, चाबी, पेन, पेचकस.. वगैरह मुझे ज्यादा  आकर्षित करतें हैं....




Tuesday, June 16, 2009

T - 20 की हार से निराश न हों!!!

धोनी की टीम T-20 वर्ल्ड कप से बाहर हो गई, कोई बात नहीं मैने कल से ही प्रेक्टिस शुरु कर दी है.. पहले प्रेक्टिस सेशन का exclusive विडियो केवल आपके लिये.. (किसी को बताना नहीं.. वरना दुसरी टीम वाले अपनी योजना समझ लेगें)... विडियो थोड़ा बड़ा (३ मिनिट) तो है, पर क्या करूं इससे कम मेहनत में टीम इंडिया कैसे जीतेगी...
 




शरारत ऑफ द डे
मम्मी को कान साफ करते देख मैने भी "इयर बड़" की फरमाइश कर डाली.. और जब तक नहीं मिला हल्ला मचा दिया. आखिर में एक बड़ निकाल कर दी..और इसका क्या करतें है वो सीख लिया था मम्मी को देखते हुऐ... इयर बड़ तो मिल गया... अब जरुरत थी एक इयर की.. और वो मिल गया मम्मी का.. मम्मी की गोद में चढ़ उनके कान में बड़ डालने की कोशिश करने लगा... बात नहीं जमी तो पापा के पास चला गया... वहां भी दाल नहीं गली... तो आखिर में खुद का कान किस दिन काम आना था.... आदि एसे इयर बड़ कान में नहीं डालते.. चोट लग जाती है.... 

Monday, June 15, 2009

छुपा छुपी खेले आओ...

समीर अंकल ने फरमाइश की "....ab to doudte dekhenge tumhe agale video me. :).."  तो देखिये एक मिनिट ये विडियो निलिमा दीदी के साथ छुपा छुपी  खेलते हुऐ...

कल मेरे ब्लोग पर रतन अंकल के कमेंट्स का सैकड़ा पुरा हुआ.. 
थेक्यु रतन अंकल!!


शरारत ऑफ द डे
कल शाम पापा के साथ मार्केट घुमने गया.. समान ले पापा ने मुझे काउन्टर पर बैठाया और बिल बनवाने लगे.. और मैं काउन्टर पर बैठ सामान, मोनिटर पर अपनी निगाह और हाथ आजमा रहा था.. उस दुकान में मुरमुरे नहीं थे और पापा ने कहा कि आप पास कि दुकान से लाकर दे दो.. तो उधर से जबाब मिला कि नहीं अभी कोई आदमी नहीं है जो वहाँ से ला दे.. पापा ने कहा ठीक है आप इसे (आदि को) दो मिनिट रखो... तो उधर से सुनने को मिला.... "गोपाल...... पास से एक मुरमुरे का पैकेट लाना!!!!"  अब आप बताओ मैनें काउन्टर एसा क्या किया?

Sunday, June 14, 2009

आज बातें दांतों की...

स्वागत करें मेरे  आठवें दांत का..  एक चौथाई हो गये न अब? चार दांत ऊपर और चार दांत नीचे.. देखिये  कौन कब आया था..


अभी तक तो में दांतों का स्वागत DENTON टेबलेट से कर रहा था .. पर जीतु अंकल ने बताया कि अब उससे काम नहीं चलने वाला.. और अब उन्होने मुझे खाने को दी है CALCAREA PHOSPHORICA टेबलेट.. इसमें भी मजा है.. पता है क्यों? क्योंकि अब मुझे मिलती है आठ गोली.. चार सुबह और चार शाम को..और इन्हे खाने में कितना मजा आता है ये तो आप इस विडियो में देख ही चुकें है...

अब इतने दांत आ गये तो  इनकी सफाई की व्यवस्था भी करनी पडे़गी न.. पता है मम्मी जब भी वाश बेसिन पर ले जाती है तो मैं वहां से पापा मम्मी के ब्रश उठा लाता था..  पर वो खेलने के लिये ठीक थे.. दांत साफ करने के लिये तो खुद का चहिये न?


तो ये आ गया मेरा टुथ ब्रश..छोटा सा मेरी साईज के हिसाब से..


आपको लग सकता है कि मैं ब्रश कर रहा हूँ.. पर दरअसल मैं...अब आप समझ जाओ न कि क्या कर रहा हूँ मैं इससे...

और इस मुँह में डाल घूम लेता हूँ...वैसे इस फोटो में जो कुलर देख रहे हैं न? वहीं है आज मेरी "शरारत ऑफ द डे"...




शरारत ऑफ द डे
मेरे मुँह में ब्रश भी देखा और फोटो के पीछे कुलर भी.. पता लगा मेरी शरारत का? ब्रश का अगला हिस्सा मुँह में दबाये पिछला हिस्सा कूलर की जाली में डाल दिया.. और धीरे धीरे पुरा ब्रश कुलर में... अभी भी वहीं है... आदि अब ब्रश किससे करोगे?

Saturday, June 13, 2009

मेरोडोना, काका या पेले...

बॉल तो बहुत पसंद है मुझे.. और जबसे चलना सीखा है बॉल के पीछे भागना मेरे मनपसंद खेलो में एक है.. पर मेरी पुरानी बॉल बहुत हल्की थी.. और छुते ही दूर भागने लगती थी.. सारा वक्त उसे पकड़ने में ही निकल जाता था.. खेलने को बहुत कम मिलता था..


समस्या गंभीर थी, जल्द समाधान चाहती थी... मम्मी ने सुझाया आदि के लिये कुछ भारी बॉल लाई जाये जो कम तेज भागे.. ये आईडिया आजमाने में कोई बुराई नहीं थी.. स्पोर्टस वाली शॉप पर गये और तरह तरह की बॉल देखी... फुटबाल या बॉलिबॉल नहीं ली क्योंकि वो चमडे़ की थी और शायद मेरे दांतों के वार नहीं सह सके...:) तो पापा को पसंद आई ये बास्केट बॉल..

बॉल चाहे बास्केट हो या फुटबाल मुझे क्या फर्क पड़ने वाला था... मैं तो इसे किक भी मार सकता हूँ और उठा कर घूम भी सकता हूँ..

और ये ज्यादा भागती नहीं.... मैं जीतना दम लगाता हूँ उसी तरह बस... तो ये मेरे कंट्रोल में रहती है...

बस अब कहीं बास्केट दिख जाये...

नहीं तो कोई बात नहीं... नया पेले तैयार हो रहा है..  क्या ख्याल है आपका....







मुमेंट ऑफ द डे
कल पापा सुबह ऑफिस जाने के लिये तैयार हो रहे थे... मुडे़ पर बैठ जुते पहन रहे थे... तैयार तो मैं भी था पर जुते नहीं पहने थे... पापा को जुते पहनते देख आ गया पापा के पास और उनके जुतों में अपने पैर आजमाने लगा.. बडे़ थे तो क्या, ट्राई करने में क्या हर्ज है... :)

Friday, June 12, 2009

रसिया को नारि बनाओ री! मोहन को नारि बनाओ री!!

मम्मी मुंबई से केवल आम ही नहीं लाई वो मेरे लिये एक सुन्दर फ्राक भी लाई.. मम्मी बहुत दिनों से सोच रही थी पर उन्हे अब मौका मिला तो ले आई..  फ्राक आई तो मेरे नखरे भी शुरु हो गये और मैने पहनने से मना कर दिया.. पर देखो मम्मी की चालाकी.. मुझे ये बिजली का स्विच पकड़ा कर फ्राक पहना ही दी...
केवल फ्राक पहनने से काम नहीं होने वाला थे.. बिंदी भी तो लगानी होती है..


एक बिन्दी माथे पर लगाने के लिये चाहिये तो दूसरी खेलने के लिये.. देखो पता नहीं कहां गुम हो गई..


और ये देखो मैं तैयार.. मम्मा अब तो बाहर ले जाओ?


कैसी लगी ये प्यारी सी फ्राक आपको?

(शिर्षक पिछली पोस्ट पर आई प्रेमलता जी की टिप्पणी से )

Thursday, June 11, 2009

आदि कितना बड़ा?

आपसे बातें करते करते आदि कितना बडा़ हो गया देखिये ३० सेकण्ड के इस विडियो में..



शरारत ऑफ द डे
आदि को बर्फ अच्छी लगती है.. एक आइस क्युब दे दें तो उससे खेलता  रहता है, मौका मिलने पर मुँह में डाल देता है.. जमीन पर गिरा कर पकड़ने की कोशिश करता है, न पकड़ आये तो झल्लाता है.. और साहेब को बर्फ का स्त्रोत पता है.. फ्रिज के पास खड़ा होकर दरवाजा खटखटाता है.. यहीं से तो आती है बर्फ... पर कल बार बार दरवाजा खटखटाने पर भी बर्फ नहीं मिली.... आदि छोड़ दो फ्रिज को... बर्फ खाने से गला खराब हो जायेगा..... समझो दोस्त!!  

Wednesday, June 10, 2009

एसे सज धज कर कहाँ गये थे आदि?

शनिवार शाम को अच्छे से तैयार हो कर एयरपोर्ट गया.. अरे उसी दिन तो मेरी मम्मी मुंबई से आने वाली थी.. तो पेंट टीशर्ट और सेण्डल पहन कर तैयार हो गया.. और चला एयरपोर्ट की और..


जैसा हमेशा होता है फ्लाइट लेट हो गई.. तो मेरे पास काफी समय था घुमने के लिये.. अब घुमने के लिये साईकिल तो लाया नहीं था तो एयरपोर्ट पर ये गाड़ी मिल गई.. वैसे आप तो इस पर सामान रखते होगें पर मैनें तो इस पर बैठने की जगह का जुगाड़ कर लिया.. इस गाड़ी पर बैठ वेटींग एरिया में बहुत देर घूमा..


घूमते घूमते जब थक गया और बोर हो गया तो इस आरामदायक कुर्सी पर बैठ गये.. घर से खिलौने तो लाये नहीं थे तो पापा के मोबाईल से काम चलाया. म्युजिक बजाया.. और डांस भी किया..


इतना सब करते करते मम्मी भी आ गई..  और में तपाक से मम्मी की गोद में चढ़ गया... और मम्मा को छू कर देखने/महसुस करने लगा..


मम्मी अकेली नहीं आई.. अपने साथ हापुस (अल्फाजों) आम का डिब्बा भी लाई.. अब तो रोज इन मीठे आमों का मजा लेता हूँ..

शरारत ऑफ द डे..
कोई मुझे बहला के एक जगह नहीं बिठा सकता.. कल शाम को ये कोशिश पापा ने की.. मेरा मन बाथरुम में जाकर पानी से खेलने का था और पापा मु्झे बार बार वहाँ से लाकर कूछ और खेलने को दे रहे थे... पापा पकड़ कर बाथरुम से लाते, कुछ खेल खिलाते और जैसे ही उनकी नजर हटती मैं दौडते हुए फिर बाथरुम की और.. चार-पाँच बार एसा करने के बाद उनको पक्का यकिन हो गया मैं एसे नहीं मानने वाला.. तो फिर मुझे बाल्टी और पानी के साथ छोड़ दिया... और मुझे मिला मेरा मन पसन्द खेल  - आदि हर समय थोडे़ न नहाते है बेटा!!! 


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