Thursday, August 27, 2009

कितनी सुन्दर बच्ची है, एक फोटो ले लें

कुछ दिन पहले (16 Aug को) जब दादा आये थे तो उनके साथ छतरपुर मंदिर घूमने गये.. मंदिर पहूच कर दादा और मम्मी तो अंदर दर्शन करने चले गये पर मुझे वहाँ की फर्श पर बनी काली और सफेद चौकड़ी ज्यादा आकर्षित कर रही थी तो मैं पापा के साथ वहीं रुक गया...

अभी कुछ देर ही हुई थी कि पापा के पास एक request आई.. "कितनी सुन्दर बच्ची है, एक फोटो ले लें.." पापा ने हाँ कह दी.. और ये देखिये हमारी फोटो... लेकिन फोटो लेने के बाद पापा ने पोल खोल दी.. बोले ये लड़का है.. आप को क्या लग रहा है.


फोटो के बाद मैं खेलने में मस्त हो गया.. वहाँ एक स्लोप था और मैं उस पर चढ़ने उतरने के मजे ले रहा था..






और फिर दादा के साथ एक और मंदीर भी गये.. 

और थोड़ी देर में वहाँ बारिश होने लगी तो मम्मी के साथ एक सुरक्षित जगह पर शरण लेनी पड़ी..
और हाँ वहाँ हलवा पुड़ी का प्रसाद भी मिला... मैंने वो भी बहुत मजे से खाया..



खुशी का  लम्हा
सुमित चाचा* सी एस की परिक्षा में न केवल पास हुए बल्कि पूरे भारत में ’8' वीं रेंक भी लाये.. सुमित चाचा सी ए और एल एल बी की डिग्री तो पहले ही ले चुके हैं..  
चाचा को बहुत बधाई!!

Wednesday, August 26, 2009

डांटने की कोई बात नहीं...

दिल्ली से चंडीगड़ जाते हुऐ रास्ते में एक ही बार रुके.. करनाल से पहले एक ढाबे पर..  मम्मी मेरे लिये तो सूजी घर से ही बना कर लाई थी.. लेकिन ज्यादा बना कर अपने लिए भी जुगाड़ कर लिया.. वहाँ तो बस चाय मगांई और बस..
ढा़बे के बहार कुछ दुकाने भी थी तो वहाँ से मुझे ये चिप्स का पैकट भी मिल गया..
और मेरे खाने और खेलने के लिये तो ये बहुत था..

ये देखो गेट के बाहर जो दुकान दिख रही है.. वहीं से लाये... पता है वहाँ एक मजेदार बात हुई.. मैं पापा जी गोदी में सवार हो कर चिप्स खरिदने गया.. पापा ने चिप्स के साथ कुछ केण्डीस और मिन्ट भी लिया.. पापा दूकान में पैसे दे ही रहे थे कि मैने जेम्स जैसी दिखने वाली रंग बिरंगी टॉफी पर हाथ मार दिया.. और वो पैकेट जमीन पर गिर गया.. और गिरते ही सारी गोलिया जमीन पर बिखर गई.. पापा मुझे हैराने से देखने लगे.. और बोले.."बेटा ये क्या किया अंकल डाँटेगें न".. पर पता है अंकल क्या बोलो.. "नहीं जी डाँटने की कोई बात नहीं आप तो बस दस रुपये दे दो.."  है न सही बात.. और पापा ने तुरंत दस रुपये दिये..और मामला रफा दफा..


एक और मजेदार किस्सा हुआ.. मैं और पापा चाय पीकर गाड़ी में बैठ गये... और पीछे से मम्मी भी आ गई.. हम चलने ही वाले थे... कि एक भैय्या बोले.."साहब चाय के पैसे दे दिये?".. पापा मम्मी एक दूसरे कि शक्ल देखने लगे.. एक दूसरे के भरोसे हम बिना पैसे दिये भी खिसकने वाले थे..




चंडीगढ़ पहूँच कर हल्का सा वायरल हो गया..  तो अभी शरारतों में कमी है.. जल्द ही ठीक हो कर मिलता हूँ..

Sunday, August 23, 2009

"बी" फॉर बर्थडे और "बी" फॉर बैलून

चंडीगढ़ से,

जैसा कि मैने बताया था मैं चंडीगढ़ आ गया हूँ.. वैसे तो अर्पित चाचा का बर्थडे मनाने आया पर कुछ दिन और यहीं रहुगां.. मम्मी के साथ..  दिल्ली से चंडीगढ़ का सफ़र शानदार रहा.. एक दो किस्से है.. वो बाद में सुनाता हूँ.. आज बात करते है चाचा के बर्थडे की.. Birthday शुरु होता है.. :"B" से और "B" से ही शुरु होता है.. "Balloon".. तो मेरे लिये दोनों का मतलब एक ही हुआ..

चाचा के जन्मदिन की पार्टी में पहुँच सबसे पहले मैने अपनी अंगुली ऊपर कर बोला.."हूँ" और समझने वाले समझ गये कि मुझे क्या चाहिये.. और तुरंत मेरे लिये एक बैलून की व्यवस्था हुई... उसके बाद मुझे क्या चाहिये था.. मेरे लिये तो वो ही बर्थडे पार्टी थी..


पार्टी में प्राची दीदी भी आई थी... एक बैलून उनको भी मिला..

पर मैने तो हल्ला मचा कर उनका बैलून भी ले लिया.. दो बैलून संभालना मेरे लिये कोई मुश्किल काम नहीं था..

और जब खेल कुद कर थक गये तो वहीँ जमीन पर आसन जमा लिया..

वैसे तो जन्मदिन पार्टी पूरी हो गई थी.. पर केक की ओपचारिकता भी तो पूरी करनी थी... नहीं तो चाचा क्या कहते..

पसंद आया!!




नई सीख..
चाचा की पार्टी में एक नई चीज सीखी.. टूथ पिक से खाना.. पार्टी में जब स्नेक्स सर्व हो रहे थे तो मेरी नजर भी उन पर पड़ी.. सबको टूथ पिक से खाते देख हमने भी उसकी फरमाईश कर डाली और खेलते खेलते टूथ पीक से खाना सीख गया.. और पनीर टिक्का खाने के मजे़ लिये सो अलग.. और तो और हमने अपनी नई कला से बर्थडे बॉय यानी ’अर्पित चाचा’ को भी पनीर टिक्का खिला दिया..

Friday, August 21, 2009

दोस्तों का स्वागत नमकिन भुजिया से किजिये..

बिट्टु को जानते हो न? 15 अगस्त की शाम अपने पापा मम्मी के साथ हमारे घर मुझसे मिलने आई थी...  वैसे तो मैं शर्मा रहा था.. दूर दुर जा रहा था पर घर आये मेहमान की कुछ तो खातिर करनी थी.. पर बिट्टु है न बहुत छोटी है.. ज्यादा खाती पीती नहीं है... पर मैने उसे भुजिया खिला दी.. और उसने भी बहुत प्यार से भुजिया खाई..

ये देखो मैं भुजिया खा रहा हूँ.. और बिट्टु के सामने भी एक भुजिया रखा है..

ये लो बिट्टु तुम भी खाओ...

अच्छे से मुँह खोलो...

दे देखो शरारती हँसी.. 

और बिट्टु भी खुश...

पसंद आया...




सूचना
आज अर्पित चाचा का जन्मदिन है और मैं उनका जन्म दिन मनाने चंडीगढ़ जा रहा हूँ.. कुछ दिन वहीं रहूँगा.. और चाचा के साथ खुब मस्ती करूगां..

Thursday, August 20, 2009

लागे रज, बधे गज

याद है विभु दीदी और अनिमेष भैया ने कहा था....
"मिट्टी मिल गई तो मानो स्वर्ग मिल गया...कोई खिलौना, कोई दूसरा खेल,मिट्टी की बराबरी नहीं कर सकता ....उसके आगे टिक ही नहीं सकता। इसलिए मिट्टी में खेलने का कोई भी मौका हम छोड़ते ही नहीं हैं। ऊपर से मम्मा-पापा को कहते हुए भी सुन लिया, 'लागे रज,बधे गज' (कहावत राजस्थानी की है, भावार्थ कुछ ये कि मिट्टी लगने से बच्चा अच्छा बढ़ता है....मिट्टी में खेलना बच्चे के शरीर के लिए अच्छा है.....)"
अब मैं चलने लग गया हूँ और समझदार हो गया हूँ (है न?) तो पापा मुझे शाम को पार्क में और झुले पर खेलने के लिये ले जाते हैं..  एसे ही एक दिन शाम को को पापा के साथ गया और मिट्टी में खेलने के मजे लिये..

रेत पर अंगुलियों के निशान बनाये..


निशान फिर से मिटाये..

और खुद ही सुन्दर चित्रकारी का आनन्द लिया..

और खुब रेत उडाई..... धम.. धम्म..

एक और बात जो फोटो में नहीं आ पाई.. वो ये कि बीच में पापा की नजर से बच कर दो बार अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाई.. (आपको जानना है तो इमेल करें.. गुप्त नुस्खा है).. और अपने दातों की मजबुती को भी परखा..   बिल्कुल खरे दांत है मेरे..:)

पसंद आया!!



(शिर्षक विभु दीदी के ब्लोग से साभार)

Tuesday, August 18, 2009

दादा मेरे बाल बना दो..

वैसे मेरे बाल बनाना कोई आसान काम नहीं है.. कम से कम तीन कंघे तो चाहिये ही..  वो इसलिये कि दो तो मेरे दोनों हाथों में खेलने के लिये.. और एक से आप बाल बनाओ..
जनमाष्टमी की सुबह जब नहा कर आया तो दादा ने सोचा कि आज आदि की चोटी बनाते हैं..  तो मैने भी सोचा चलो आज दादा तो ट्राई करने देते है और शराफत से बाल बनवाने लगा.. और तो और कंघा भी खुद ही दादा को दे दिया..
और दादा मेरे बाल बनाने लग गये..
चारों और से घूम घूम कर बाल बनवाये.. मैनें.
थोड़ा आगे से भी दादा..
एक ’पोनी’ बना दो मेरी,,
बस.. अब मैं भाग रहा हूँ...
पसंद आया दादा पोते का ये खेल!!




Monday, August 17, 2009

एसे मना मेरा स्वतंत्रता दिवस

पन्द्रह अगस्त को सुबह ही पता चल गया कि ये कोई खास दिन है.. बताओ अगर खास दिन नहीं होता तो कोई इतने सारे गुब्बारे देता भला..

अब तो गुब्बारे मेरे प्रिय हो चुके थे.. कोई दूर नहीं कर सकता.. जल्दी से दे दो पापा..
हम तैयार हो कर कंपाउड में पहुँचे.. और झण्डा फहराया.. "जय हिन्द"
और इसके बाद मिला लड्डु.. अंकल मेरे तक आने में देर लगा रहे थे.. मैने तो खुद ही ले लिया..  आजादी का स्वाद बहुत मिठा है..

और फिर मम्मी की गोद में सवार हो कर सभी लोगो को देखता रहा.... वहाँ बहुत सारे गेम्स भी हुऐ.. 

देखो कितने लोग आये थे.. और बारिश की फुहारों में आजादी का आनन्द ले रहे थे..

पसन्द आई ये पोस्ट...




सुचना
दादा कल शाम वापिस जोधपुर चले गये.. पर तीन दिन तक मैने दादा के साथ खुब मस्ती की..  जल्द ही वो सभी पोस्ट लेकर आने वाला हुँ..

अच्छा आपने कान्हा वाली पोस्ट देखी? नहीं तो यहाँ देख सकते हैं..

Saturday, August 15, 2009

आ गया आपका अपना कान्हा..

कल जन्माष्टमी थी.. और आपका प्यारा आदि "कान्हा" बन गया.. देखिये और आन्नद लिजिये..
और मेरी बांसुरी बजाने का जिम्मा पापा का





और फिर कान्हा पहुँच गया किर्तन में.. देखो सबकी नजर "कान्हा" की और






और कान्हा कि ये अदा..

कान्हा पसन्द आया..



स्वत्रंता दिवस की शुभकामनाऐं

Friday, August 14, 2009

टेलिफोन का पुनः आविष्कार

वैसे तो टेलिफोन का आविष्कार बहुत पहले ही ’बेल’ अंकल ने कर दिया था.. पर एक दिन मैने और पापा ने इसे फिर से ट्राई किया.. सोचा क्या ये वाकई काम करता है.. हुआ यूँ कि एक दिन शाम को पापा पाईप से पानी भर रहे थे... और जो चीज पापा मम्मी के पास हो तो वो तो मुझे चाहिये ही.. तो मैं पाइप का एक सिरा पकड़ रवाना हो गया.. और पापा दुसरे तो पकड़ मेरे पीछे पीछे.. और इसे खेलते खेलते हमने टेलिफोन भी ट्राई कर डाला..


आप भी देखिये हमारा टेलिफोन वाला खेल

हेलो, हेलो, पापा, पापा क्या आपको मेरी आवाज आ रही है... 

आई न.. 

हाँ मैं भी आपको सुन पा रहा हूँ...

हाँ इस कान में भी आवाज आ रही है..

आप बोलो.. मैं सुन पा रहा हूँ..

एसे हमारा खेल चलता रहा.. मैं पाईप लेकर आगे आगे और पापा मेरे पीछे पीछे..
कैसा लगा हमारा ये खेल..



आज जोधपुर से मेरे दादा आये है.. मेरे साथ खेलने.. मेरे लिये कान्हा कि ड्रेस भी लाये है... कान्हा कि ड्रेस क्यों.. अरे भाई आज जनमाष्टमी है.. और मैं भी तो कान्हा बनुंगा..

आप सभी तो जनमाष्टमी की शुभकामनाऐं
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