Monday, February 22, 2010

का, के, की, में, पर...

शब्द सीखने के बाद अब बारी है वाक्य बनाना सीखने की.. और वाक्य बनाने के लिए क्या चाहिए.. "का, के, की, में, पर...." तो अब में कुछ वाक्य बना सकता हूँ.. जैसे..

"बाबा का बेग"
"मम्मु का फोन"
"आदि की साइकल"
"साइकिल पर बिठाओ"
"झूले पर बिठाओ"

और भी कई मजेदार वाक्य बना लेता है.. आदि बाबु...


समझदारी

कल शाम को तो आदि ने समझदारी के झंडे गाड़ दिए.. मम्मी जब बाबा से फोन पर बात कर रही थी तो आदि गायब हो गया.. बात पूरी करने के बाद जब मम्मी मुझे ढूढने लगी.. तो पता चला आदि बाबू बाथरूम में गए है.. शु शु करने.. और बाबू कमोड के पास मूत्र विसर्जन कर आये.. लेकिन आदि बाबु शु शु करने से पहले पामा भी खोलना होता है..:)


Saturday, February 20, 2010

1411 - अगली बार शायद पिजरें में भी न दिखे!!

मुझे भी चिंतित होना ही चाहिए न.. कहते है की भारत में अब केवल १४११ बाघ बचे है.. केवल १४११.. बस इतने से.. पापा पिछले वर्ष जिम कोर्बेट गए.. शायद एक बाघ मिल जाए पर.. बेड लक.. उनको एक भी नहीं दिखा..



मैं शायद थोड़ा लक्की हूं.. पता है कैसे मैंने टाइगर देखा.. हां असली का.. पूरा ८-१० फिट लंबा.. पता है कहाँ त्रिवेंद्रम के चिडियाघर में..  बहुत सुन्दर टाइगर था.. और ताकतवर भी..



टाइगर देख कर बहुत अच्छा लगा.. अपने पिजरें में मस्ती से घूम रहा था.. वाकई बहुत इम्प्रेसिव था..


पर पता है.. भारत में अब केवल १४११ टाइगर ही बचे है.. और हम इन्हें कम से कम जू में तो देख पा रहे है..अगर ये ही हाल रहा तो टाइगर शायद जू में भी न नजर आये.. अगर हमने अभी चिंता नहीं की तो शायद बाद में हमें चिंता करने के लिए बाघ भी नहीं बचे... मैं तो जू में देख लिया लेकिन बाद में.......

"बाघ बचाओ" 



Friday, February 19, 2010

बाबा फिस्.....






(नागरकोविल के ऑफिस में. जनवरी-१०)

Thursday, February 18, 2010

थल, नभ और जल.....

थल पर तो चलता ही हूँ.. नभ में भी विचरण कर लिया.. अब बारी थी जल में विचरण की... तो पद्मनाभपुरम घूमने के बाद हम थिर्पाराप्पू (thirparappu) फाल्स गए...  यहाँ सुन्दर झरना भी है और एक झील भी..झील के किनारे झूले भी लगे है...और ये जगह पद्मनाभपुरम से ज्याद दूर भी नहीं..

आप घूमने जाए तो मदद मिलेगी... 

झील...

आदि का नौका विहार...

जब तक कुछ शरारत न हो तो क्या मजा.. देखो.. पापा कैसे हाथ पकड़ के बैठे है..

फिर मजा झूले का..

नकली है तो क्या.. गेंडा तो है..

हाथी.. मेरा फेवरेट..
अगली कड़ी में विवेकान्द रोक मेमोरियल ले चलूँगा.... फिर मिलते है...

Wednesday, February 17, 2010

पद्मनाभपुरम...


शनिवार को सुबह स्वीमिंग पूल में मस्ती के बाद हमने दिन में घूमने का कार्यक्रम बनाया.. प्लान था की विवेकानंद रॉक मेमोरियल जाया जाए...तो हम नागरकोविल से कन्याकुमारी की और चले.. करीब १० किमी चले थे की मुझे नींद आ गई.... और जब सोता हूं तो कम से कम एक दो घंटे तो सोता ही हूं.. कन्याकुमारी पहुँचने में २०-३० मिनिट और लगाने थे.. और अगर में नींद में हूं तो क्या कन्याकुमारी और क्या दूसरी जगह.. पापा ने तुरंत प्लान 'बी' के बारे में सोचा... पता लगाया की पद्मनाभपुरम कितनी दूर है.. स्नेहल चाचा ने बताया की वहाँ जाने में करीब एक घंटा लगेगा.. .. बस फिर क्या था.. तुरंत गाड़ी मोड़ी और चले पद्मनाभपुरम की और..

और जैसे ही हम वहां पहुचे मेरी नींद पूरी हो चुकी थी.. और फिर आराम से पैलेस घुमे..

१६ वी सदी में बना ये पैलेस वेळी हिल्स की तहलटी में स्थित है.. इस के बारे में पूरी जानकारी  यहाँ है.. और मेरे साथ पैलेस घूमना हो तो ये रहे कुछ चित्र....


पैलेस के दरवाजे पर ये दीपक बना है... घोड़े के साथ..


ये लकड़ी की सीढिया.. अंदर जाने के लिए...

इस जगह पर राजा खाना खिलाते थे... १००० आदमियों को.. मेरे लिए तो भागने का मैदान..

एक पोज इस खम्बे के साथ..

पापा मम्मी और आदि... तोनि तोनि..(तीनों तीनों)

कितना साफ फर्श है.. 

ये हाथी भी पसंद है..

वहाँ के म्यूजियम भी ही.. पुरानी मुर्तिया और सामान रखे हे.. मुझे तो ये छेनन पसंद आये..

ये शिलालेख.. आप पढ़ो.. में तो चाचा और मम्मी के साथ छुपा छुपी खेल रहा हूं..

मम्मी मैं यहाँ हूं...

कभी कन्याकुमारी या त्रिवेन्दम जाना हो तो जरुर घूमना.. बहुत सुन्दर महल है... 

आया पसंद?

Tuesday, February 16, 2010

इतनी मस्ती पहले कभी नहीं.....

होटल के स्वीमिंग पूल पर पापा पता नहीं इतने दिन क्यों नहीं ले गए.. और मुझे तो पता ही नहीं था की होटल में छत पर एक पूल भी है.. शायद पापा छुट्टी का इंतज़ार कर रहे थे..

फिर छुट्टी वाले दिन (शनिवार २३ जनवरी) को पापा मुझे लेकर स्वीमिंग पूल पर गए.. एक पल तो डरा.. ठंडा ठंडा पानी... सुबह सुबह.. पर जैसे ही शावर लिया.. सर्दी छू मंतर हो गई.. और अपने साथ डर भी ले गई... फिर तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गई.. कुछ देर तो ट्यूब पर बैठा.. फिर तो पूल भी खेल के मैदान जैसा हो गया... विश्वास नहीं होता न? फोटो लाया हूं.. खुद देख लो..

पूल में शुरुआत

अब आने लगा मजा..

ज़रा घूम के देखे कितना बड़ा है?

अब ट्यूब की जरुरत नहीं..

छपाक...


जम्प कर के देखें...

ट्यूब.. नो.. मत.. जाओ..

ये अच्छा है..

लास्ट स्टंट.. डाईव...

ये धम्म...

चेतावनी: ये स्टंट खतरनाक है... किसी बच्चे की देखरेख में ही करें... :)


आभार..
पता है मुझे 'संवाद सम्मान-2009' की श्रेणी 'बच्चों का ब्लॉग' में नोमिनेशन मिला है... है न खुशी की बात..  मेरे हमसफर बने रहने के लिए आप सभी का आभार..
thank you!! 


Monday, February 15, 2010

घुड़सवारी...

कल बताया की जब हम शाम को कन्याकुमारी के बीच पर पहुचे तो घोड़ा जा चुका था... बल्कि घोड़ा हमारे सामने ही निकल गया.. और हम अपनी गाडी से देखते रह गए..  घुड़सवारी तो करनी ही थी.. तो हम अगले दिन शाम को फिर कन्याकुमारी पहुँच गए.. इस बार थोडा जल्दी.. लेकिन आज भी घोड़ा हमारे सामने से जा रहा था.. no, not again!!

लेकिन उस दिन तो पापा ठान के आये थे.. तुरंत गाडी से उतरे और घोड़े का पीछा करने लगे.. और थोड़ी देर में पापा और घोड़े वाले भैया बात कर रहे थे.. भैया पहले तो मना करने लगे पर पापा ने उन्हें मना ही लिया.. और आदि घोड़े पर सवार हो गया..



एक बार सवार हुआ तो भैया को भी अच्छा लगा.. तो थोड़ी देर का कहने वाले भैया आदि को दूर दूर तक घुमाने ले गए.. और मैं तो घुडसवारी के मजे ले ही रहा था.. टिक टिक घोड़ा... मंजा आ गया... कल मिलते है एक नये किस्से के साथ..

Sunday, February 14, 2010

सनराइज कन्याकुमारी में...

17 जनवरी को हम त्रिवेंद्रम होते हुए नागरकोविल पहुचे.. नागरकोविल कन्याकुमारी से २० किमी दूर है.. और कन्यामुमारी जिले का जिला मुख्यालय है.. हमें यहीं रुकना था..

19 जनवरी को सुबह सुबह हम कन्याकुमारी चले गए.. सनराइज देखने.. अपना केमरा भूल कर..:(  तो बस दो ही फोटो लिए.. विवेकानंद रॉक मेमोरियल और संत तिरुवल्लुवर के पीछे सूर्योदय की प्यारी छठा..

(स्नेहल चाचा, मम्मी, पापा, आदि, दीपक चाचा)


पापा कहते है की कन्याकुमारी दिन में तीन बार जाना चाहिए.. सुबह सूर्योदय के लिए.. रात में समुद्र देखने और दिन में विवेकानंद रॉक मेमोरियल...  

रात में समुद्र का प्यारा नजारा देखने हम 20 जनवरी को फिर वहा चले गए..  वहाँ रेत में खेलने और भागने का अलग ही मजा था...



पता है.. बीच पर घुडसवारी भी कर सकते है... और मेरा बहुत मन था घोड़े पर बैठने का.. पर हम पहुंचे तब तक घोड़ा जा चुका था.. घुडसवारी का किस्सा अगली पोस्ट में....

Happy Valentine Day!!

Saturday, February 13, 2010

मस्ती भरे दस दिन...

कन्याकुमारी घूम कर वापस दिल्ली आये बहुत दिन हो गए. .  लेकिन अभी तक उसकी खबर आप तक नहीं पहुंची... किसी पर निर्भर होना... अब  4-5 पोस्ट में पुरे दस दिन का हाल बयान करते हें...

दिल्ली से १७ जनवरी को निकले.... काफी कोहरा था... लग रहा था की फ्लाईट लेट होगी.. पर नहीं.. हम लक्की थे..  जब पहली बार बोर्डिग कार्ड मिला था तो बिना नाम का.. लेकिन इस बार बोर्डिंग कार्ड भी मेरे नाम का मिला... मेरी मस्ती एयपोर्ट पर शुरू हो गई.. मैं भागना चाह रहा था पर.. पापा मुझे जाने नहीं दे रहे थे.. आखिर सिक्योरिटी चेक पर पापा की पकड़ ढीली हुई और मैं लाइन से बाहर..  ऐसे ही मस्ती करते हुए हमारी बोर्डिंग भी हो गई.. पर मुझे प्लेन तक ले जाने वाली बस ज्यादा पसंद आई.. प्लेन में जाने के बजाय बस में घूमना चाह रहा था पर..




एक बार प्लेन में सवार हुआ तो मस्ती वहा भी शुरू हो गई...






पर फलाईट बहुत देर की थी.. ४.३० घंटे की.. तो बोर हो गया और आधे रास्ते डिमांड कर की बाहर जाने की... पर इस बार भी किसी ने नहीं सूना..  क्या फर्क पडता थोड़ा बादलों में घूम आता तो? बताओ...


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