Sunday, December 28, 2008

कान्हा ये माखन नहीं है!

रोज़ देखता हूँ मम्मी, पापा और सभी को अपने आप खाते हुऐ, आज मैने भी खुद खाने की ठान ली थी, मम्मी के हाथ से चम्मच लिया और खाने लगा, मम्मी के लगा की चम्मच से मुँह में चोट लग जायेगी तो चम्मच हटा लिया.. पर मैं कहाँ रुकने वाला था, भुख भी तो जोर से लगी थी..कल तो मम्मी भी मेहरबान थी.. अपने आप खाने से नहीं रोका, पहले अपनी कटोरी खाली की, फिर मम्मी की कटोरी भी झपट ली.. और तो और हाथ में ठिक से सूजी नहीं आ रही थी तो पूरी कटोरी ही मुहँ से लगा ली..फिर क्या था, सूजी का प्याला और मैं.. खुब खाया, मुँह और कपडो़ पर लगाया, आप ही देख लिजिये कैसा मेकअप किया है?














कभी-कभी ऐसा हो तो कितना मज़ा आये! ऐसे ही तो मैं खाना सीखूंगा ना!

11 comments:

  1. पल्टू सूजी का हलवा ऐसे ही खाते रहना, आखिर जल्दी बड़ा जो होना है |

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  2. बहुत अच्छी बात है . जल्दी जल्दी सब सीख लो . जल्दी बडे हो जाओ . हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है !

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  3. छा गये पल्टू दादा आज तो ! घणे जोर तैं हलवा खाण लाग रे हो ..जरा ताऊ के लिये भी रखना ! :) बहुत आशिष पल्टु को !

    रामराम !

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  4. बहुत प्यारे लग रहे हो बबुवा.. :)

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  5. बहुत खूब. होंठों पर ये क्या काली बिंदी लगा रखी है.इसे से माथे के बाईं ओर होना चाहिए.

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  6. बोलते चित्र. वाह!

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  7. अरे पलटू क्या स्टाईल है खाने, का मजा आ गया, चलो कल मिलते है.प्यार

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  8. सुब्रमलियब अंकल, ये काली बिंदी नहीं, हरे धनीये का पत्ता है..

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  9. मेरे मन को भा गए अब तुम प्रिय आदित्य,
    मन करता है - आज से देखूँ तुमको नित्य!

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  10. बहुत अच्चे .... तुम कभी एक और डीश ट्राय करना जिसे सभ पसंद करते हैं इसे मागी कहते हैं

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  11. बहुत खूब। पर भइये, स्वाद कैसा था, ये तो बताया ही नहीं।

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