समस्या गंभीर थी, जल्द समाधान चाहती थी... मम्मी ने सुझाया आदि के लिये कुछ भारी बॉल लाई जाये जो कम तेज भागे.. ये आईडिया आजमाने में कोई बुराई नहीं थी.. स्पोर्टस वाली शॉप पर गये और तरह तरह की बॉल देखी... फुटबाल या बॉलिबॉल नहीं ली क्योंकि वो चमडे़ की थी और शायद मेरे दांतों के वार नहीं सह सके...:) तो पापा को पसंद आई ये बास्केट बॉल..
बॉल चाहे बास्केट हो या फुटबाल मुझे क्या फर्क पड़ने वाला था... मैं तो इसे किक भी मार सकता हूँ और उठा कर घूम भी सकता हूँ..
और ये ज्यादा भागती नहीं.... मैं जीतना दम लगाता हूँ उसी तरह बस... तो ये मेरे कंट्रोल में रहती है...
बस अब कहीं बास्केट दिख जाये...
नहीं तो कोई बात नहीं... नया पेले तैयार हो रहा है.. क्या ख्याल है आपका....
मुमेंट ऑफ द डे कल पापा सुबह ऑफिस जाने के लिये तैयार हो रहे थे... मुडे़ पर बैठ जुते पहन रहे थे... तैयार तो मैं भी था पर जुते नहीं पहने थे... पापा को जुते पहनते देख आ गया पापा के पास और उनके जुतों में अपने पैर आजमाने लगा.. बडे़ थे तो क्या, ट्राई करने में क्या हर्ज है... :) |
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आज तो पुरे बास्केट बॉल के खिलाडी लग रहे हो | (पूत के पांव पालने में ही नजर आ रहे है |)
ReplyDeleteआदि गुरु छाते जा रहे हो?:)
ReplyDeleteरामराम.
ये पीली पीली गेंद ...भाई बहुत कुछ समझने लगे है ..... बड़े हो गए है आप ..... दुनियादारी की समझ जल्दी ही आयेगी . उम्दा सब कुछ उम्दा
ReplyDeletebachche kitne samajhdar ho gaye hai
ReplyDeleteशाबश बेटे, बास्केट बाल से खुब खेलो .
ReplyDeleteप्यार ओर बहुत सा प्यार
लगता है बड़े होकर खिलाड़ी बनने का इरादा है।
ReplyDeleteबॉल के साथ सुन्दर लग रहे हो।
मारूं हरकतें कर डालीं!
ReplyDeleteपापा के जूतों में पैर घुसाने का काम तो बच्चों का शौक होता है . कई तो पैर घुसाकर चिल्लाते है कि मैं पापा बन गया :)
ReplyDeleteदेख लो..कहीं कोई कटोरी जैसी डाईनिंग टेबल पर दिखे तो उसी को बास्केट मान कर बॉल फेंको..ज्यादा ऊँची भी नहीं है.. :)
ReplyDeleteफिर मम्मी पापा बतायेंगे कि बास्केट हुआ कि नहीं. :)