एक छोटा सा स्टूल से घर में.. मेरा one ऑफ द फेवरेट.. फेवरेट इसलिये क्योंकी इससे कई कारनामें अंजाम दे सकता हूँ.. ये पूरा मेरे कंट्रोल में रहता है.. पूरा मतलब पूरा.. इसे उठा सकता हूँ, उल्टा (पटक) सकता हूँ.. इसको लेकर पुरे घर में घूम सकता हूँ.. और इस पर चढ़ अपनी विजयी पताका फहरा सकता हूँ... यकिन नहीं हो रहा न? मत मानो.. पर ये स्लाईड शो देखने के बाद अपना फैसला सुनाना..
वैसे ये हरकते देख पापा ने स्टूल गायब कर दिया है...ताकि अकेले में ये कारनामें न अंजाम दूँ.. अब पता नहीं कब मिलेगा.. आप जरा शिफारिश किजिये..
हाय आदि कैसे हो? लग तो चकाचक रहे हो? बहुत बढिया.
ReplyDeleteतेरी इस काम के लिये सिफ़ारिश नही की जा सकती.
रामराम.
िआदि देखो बेटा इस पर चढना नहीं आज मेरी नातिन ऐसे ही स्टूल पर चढी और गिर गयी ध्यान रखना ओ के आशीर्वाद्
ReplyDeleteभैया संभल के ....
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
आदि ! यह स्टूल गिराने का औजार भी है अतः इसे दिलाने की सिफारिश नहीं की जा सकती |
ReplyDeleteइसकी सिफारिश कोई नहीं होगी जी आदि जी :) खूब मस्त शैतानी है यह ...संभल कर
ReplyDeleteहाँ लगता है तुम्हारे लिए यह वाकर का काम करता होगा. जमीन चिकनी है इस लिए उसके सहारे खूब भाग दौड़ भी कर लोगे.(skating) लेकिन याद रखना की उसमे ब्रेक नहीं है. माथा फूट जाएगा.
ReplyDeleteअरे पलटू तुम तो सरकस के जोकर की तरह से कमाल दिखा रहे हॊ. बहुत सुंदर लेकिन बहुत ध्यान से, कही अभी नये आये दो दांत मत तुड्वा लेना.
ReplyDeleteओर हम बिलकुल भी सिफ़ारिश नही करेगे इस बार , बल्कि पापा ने अच्छा किया.
प्यार
चलो यार किसि ने भी तुम्हारे लिये सिफारिश नहीं की में थॊडी सी कर देता हुं. "पापा यही उमर हॆ आदी की शरारत करने की, आप घर आते ही उसे उसका स्टूल दे देना", ऒर उसका ध्यान रखना
ReplyDeleteआदि तुम्हारी करतूत अच्छी लगीं।
ReplyDeleteये शरारत बार-बार देखने को मन करता है।
बिना ट्रेनर के ऐसे करतव नहीं करना चाहिए . वेसे मज़ा बहुत आता होगा यह सब करने में
ReplyDeleteबहुत बढिया बेटा इस पर चढना नहीं ....
ReplyDeleteऔर भी हैं सामाँ, आदित्य प्यारे स्टूल के सिवा
ReplyDeleteनजर आएंगे जब वे, धूल चाटेगा स्टूल बिचारा।
अरे थोडा ढूंढ़ के लाओ, नहीं तो पापा को पकड़ के मांगो और फिर उनके साथ खेलो इससे. अकेले नहीं :)
ReplyDeleteदे दो यार आदि को हमारे. खेलेगा बस और कुछ तोड़ेगा नहीं और न ही किसी को परेशान करेगा. है न आदि!! आज दे देंगे पापा मगर बदमाशी में कुछ तोडना मत. :)
ReplyDeleteखेलो, खेलो, और खूब खेलो.....यही तो दिन हैं मौज-मस्ती के......पर ज़रा संभलकर....
ReplyDeleteसाभार
हमसफ़र यादों का.......
अरे वत्स ' आदि ',
ReplyDeleteऔर सब तो ठीक , लेकिन ये मेरा 'सिंहासन' ले के कहाँ गोल हो गए ? ये ही तो मेरे राजसिंहासन का ' सिंहासन ' है !
चलो कोइ बात नहीं , वैसे भी मेरे किसी काम नहीं आ रहा था . वैसे इसपे चढ़ने उतरने उलटने पुलटने दूसरे को उतारने बैठाने में कोई हर्ज़ नहीं है . मज़ेदार काम है . पर खतरा भी हो सकता है. इसलिए अच्छी देखरेख 'गार्जियन शिप ' में ही करना .
दिल्ली के 'बाबा' लोग भी ऐसा ही करते हैं !
खूब सारे आशीस . तुमने मन मोह लिया .
नज़र न लगे .
chasm e baddoor !!
jiyo mahara lal !
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