शनिवार की देर शाम पापा भी पहुँच गये मुझे फिसलपट्टी पर फिसलाने के लिये... मुझे पट्टी पर खेलता देख आश्चर्य करने लगे... तुरंत मम्मी को फोन कर बोला.."बालकॉनी से देखो, आदि फिसलपट्टी पर कितना अच्छा खेल रहा है..." बालकॉनी से मुझे फिसलता देख मम्मी से नहीं रहा गया और केमरा ले नीचे आ गई..... और इन खुबसुरत पलों को कैद कर लिया खास आपके लिये...
हैण्डल को मजबुती से पकड़ धीरे धीरे नीचे आने की कौशिश...
फिसलने के बाद फिर से ऊपर जाना होता है....
अच्छे से बैठ कर फिर नीचे जाने की तैयारी...
खुद ही दम लगा कर ऊपर जाने कौशिश...
बहुत मजा आया...
याद आया बचपन? कभी फिसले है ऐसे?
गजब ताकत आ गई है बाबू!! खूब अच्छे...संभल कर फिसलना..खूब मजे में.
ReplyDeleteछा गये पल्टूजी आप तो. क्या मजा आता है यार इसमे तो. बहुत बीता जमाना याद करवा दिया. हमारे जमाने मे तो ये भी नही थी कोई बडे से चिकने पत्थर पर फ़िसल कर ही खुश हो लेते थे भाई.
ReplyDeleteएक बार मेरे नाम से भी फ़िसल लेना आज. मुझे तो देख कर ही मजा आरहा है.
रामराम.
फिसलने का आनन्द अदभुत है । खूब फिसल रहे हैं आप ।
ReplyDeleteहा हा हा हा हा हा हा ओये हीरो सच मे बचपन याद दिला दिया.......बहुत मजे कर रहे हो .....है न..
ReplyDeletelove ya
फिसले तो हम भी है यार कहीं.. पर वो फिसल पट्टी नहीं थी... :)
ReplyDeleteजोधपुर में शास्त्री सर्किल पर बनी पत्तियों पर खूब फिसले है हम..
:) enjoy .!!
ReplyDeleteहमारे ज़माने में ये फिसलपट्टियाँ तो होती नहीं थी हाँ रेत के बड़े टील्ले जरुर होते थे हम तो उन टिल्लों पर ही फिसला करते थे | रेत में फिसलने का भी अलग मजा आता था |
ReplyDeleteखूब फिसले है....हमारे छोटू रोज स्कूल से आते वक़्त दो मिनट रूककर फिसलते है...पापा लेने जाते है ...एक दो बार उनके किसी काम में बिजी होने के कारण मै गया तो पापा ने हिदायत दी....दो तीन बार फिसलने देना....जल्दबाजी मत करना...दादा -पोते की बोन्डिंग में अपुन कौन ?
ReplyDeleteअब तो अपने बेटे को फिसला रहा हूँ:)
ReplyDeletesach kaha yaad aa gaya bachpan ..samhal kar fislana babu.
ReplyDeleteवाह - फिजिक्स का पहला पाठ!
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