Monday, August 25, 2008

दो बूँद ज़िंदगी की

आज तो मम्मी ने सुबह-सुबह ही नहला दिया.. कुछ समझ नहीं आया.. इतनी जल्दी क्यों ? अभी तो पापा ऑफ़ीस भी नहीं गये थे... फिर पापा और आदि साथ-साथ क्यों तैयार हो रहे थे ? थोड़ी देर में पता चला कि पापा-मम्मी आदि को लेकर बाहर जा रहे थे.. पर मुझे पता नहीं था कि यह कोई खुश होने की बात नहीं थी।
आदि को फिर से हॉस्पिटल ले जाया जा रहा था.. आज आदि को टीका लगना था.. मतलब फिर से सुई उईईईई...
पहले तो मेरा वज़न लिया गया, इस बार वज़न था 6.3 kg . पिछले एक महीने में आधा किलो वज़न बढा.. ठीक है न!
आख़िर वह पल आया.. नर्स दीदी इंजेक्शन तैयार कर रही थी.. उफ़ ! फिर से.. मैं पापा की गोदी में दुबक गया और दीदी ने सुई मेरे thigh में लगा दी.. मैं रो पड़ा.. बहुत दर्द हुआ सच में....तब मम्मी ने मुझे गोद ले लिया और चुप कराने कोशीश की... थोड़ी देर में मैं चुप हुआ.. अब नर्स दीदी ने मुझे मीठी दवा पिलाई... इसे ही कहते है...दो बूँद ज़िन्दगी की... इन सब के बाद मेरे टिकाकरण का यह चरण तो पूरा हुआ... अगला टीका तो 5 महीने बाद लगेगा.
लेकिन आज मेरे पाँव में बहुत दर्द है.. मैं बहुत परेशान हूँ.. चिन्ता नहीं करना मैं जल्द ही ठीक हो जाऊँगा ...

2 comments:

  1. आदि बेटे , कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ता है। जीवनभर रोगमुक्त रहने के लिए टीके लगवाना जरूरी है। इस दुनिया में आए हो तो कष्ट सहने के लिए भी तैयार रहो।

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  2. टीका लगवाना तो जरुरी है. अब मीठी दवा खाओ फिर सब दर्द ठीक हो जायेगा. आदि तो अच्छा बच्चा है. डरते थोड़ी हैं सुई लगवाने से बहादुर बच्चे.

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कैसी लगी आपको आदि की बातें ? जरुर बतायें

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