वाकर का आइडिया फेल होते ही रतन अंकल ने कहा ".....चलना भी अपने आप सीख जावोगे वाकर वुकर की जरुरत ही नही पड़ेगी, हम भी तो बिना वाकर ही चलना सीखे थे उस ज़माने वाकर की जगह रेडूला होता था जो गांव का खाती लकड़ी का बना कर देता था उसमे पैरों पर कोई साइड इफेक्ट भी नही पड़ता था ! रेडूला शायद तुम्हारे जोधपुर में भी मिल सकता है |" रेडूला कहते ही पापा को भी अपने समय का गाडो़ला याद आ गया.. फिर सोच शुरु हो गई कि इसकी व्यवस्था कैसे की जाये.. और कुछ समझ में न आते देख पापा ने जोधपुर में दादा को फोन कर दिया, उसी दिन शाम को चार बजे.. जब शाम के छ: बजे किसी और काम से पुनः फोन किया तो दादी ने बताया कि मेरा ’रेडूला’ या कहें तो ’गाडो़ला’ आ चुका है और दादा उस पर कलर कर रहे है.. इतनी जल्दी.... अरे अब आपको क्या बताऊं मेरे लिये तो सभी हाजिर रहते है, और मेरे सभी काम तुरंत होते है.. खैर अब ’गाड़ोला’ जोधपुर तक तो पहुँच गया.. पर सवाल ये था कि ये मुझ तक कैसे और कब पहुचेगा.. अभी तो जोधपुर जाने का या वहां से किसी के आने का कोई कार्यक्रम ही नहीं है.. कुछ दिन तो ऐसे ही सोचने में चले गये.. आखिर में पापा ने प्रकाश अंकल को फोन किया यदि उनका कोई परीचित आ रहा हो तो... प्रकाश अंकल रेल्वे में है.. उनके परीचित तो रोज जोधपुर से आते रहते है..उन्होने शनिवार को मण्डोर एक्सप्रेस में गाडो़ला रखवा दिया.. अब बाकी ड़्यूटी तो पापा की थी..पापा कल सवेरे साढे़ पाँच बजे उठ गये और चल दिये पुरानी दिल्ली रेल्वे स्टेशन.. वापस आये साढ़े आठ बजे तो उनके हाथ में था मेरा ’गाड़ोला’.. नई चीज आते ही मैं उसके परिक्षण निरिक्षण में व्यस्त हो गया... और शुरू हो गई मेरी ट्रेनिगं.. और ये रहा मेरी ट्रेनिग का पहला दिन...
गाडोले के साथ और फोटो मेरी फोटो गैलेरी में यहां देखें...
आदि आपके पापा को पहेली के प्रथम विजेता बनने के बधाई....आज तो बहुत खुश लग रहे हो हाँ , हम्म चलना जो सीख रहे हो....’गाडो़ला" की मदद से जल्दी ही दौड़ने भी लगोगे हाँ.....खुश रहो.."
ReplyDeleteLove ya
’गाडो़ला" में ब्रेक नहीं होता. सरपट भागता है. सावधानी से. पापा मम्मी से कहना की तुम्हे पकड़े रहें. देखना दो दिनमे सीख जाओगे. खूब सारा प्यार.
ReplyDeleteपढ़कर अच्छा लगा...कुछ महीने पहले तक मैं जोधपुर में ही था..हवाई अड्डे की मुरम्मत का काम शुरू होने के बाद से मंडोर से ही दिल्ली आना होता था.. ह्म्म्म आदि अगर रेडूला उस वक्त लाने की बात होती तो मुझे तुम्हारे लिए यह लाकर खुशी होती..अब ज़ल्दी ज़ल्दी चलना सीख जाओ...
ReplyDeleteरेडूला बढ़िया है। पापा को चटख रंग से रंगने को कहो प्यारे!
ReplyDeleteआदि पहले तो आपके पापा को पहेली के प्रथम विजेता बनने के बधाई | और तुम्हे गडोला मिलने की ! भई ठीक ऐसा ही रेडूला हमारे लिए भी हुआ करता था , मारवाड़ में इसे गडोला कहते है जबकि हमारी शेखावाटी में इसे रेडूला ! अब खूब चलाओ और चलना सीखो |
ReplyDeleteवाकर से बचना नन्हे मियां...हानिकारक है...ओर हाँ ज्ञान अंकल की सलाह मानो
ReplyDeleteअरे बेटा इस मे दादा, दादी का प्यार भी है, दादा ने झट्पट यू ही नही ला दिया, फ़िर उस पर प्यार से रंग किया.
ReplyDeleteओर पलटू राजा लगता है इसे हम सब ने खुब चलाया है, ओर नाम भी तो रेडूला लेते ही दिमाग मे झट इस का चित्र आ गया, चलो अब इसे ध्यान से चलाना. आज तो बेटा बडा खुश्लग रहा है.
प्यार ओर प्यार
vah adi ab yaad aya mujhe redha kehte the ise tum redula kehte ho bhi bahu achha isse jaldi bhagna seekh jaaoge ashirvad
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