प्यार से ... ... .
मम्मी की गोदी में चढ़कर,
जब उनकी आँखों में देखा,
आँखों में था सपना!
सपने में देखा, तो देखा --
दौड़-दौड़कर, कूद-कूदकर,
खेल रहा हूँ मैं,
प्यार से
खेल रहा हूँ मैं!
मम्मी की गोदी में चढ़कर,
जब उनकी नथनी में देखा,
नथनी में था अपना!
अपने को देखा, तो देखा --
उसमें बैठा बहुत शान से,
झूल रहा हूँ मैं,
शान से
झूल रहा हूँ मैं!
बहुत सुंदर कविता. आभार रवि जी का पल्टू के लिये इतनी सुंदर कविता लिखने के लिये.
ReplyDeleteरामराम.
वाह छोटू.. बसंत बारिश और चाँद घटाओ पे तो होती ही थी.. अब तो छोटू पर भी कविताए लिखी जा रही है.. रवि जी का आभार अपने छुटकु के लिए इतनी प्यारी कविता लिखने के लिए..
ReplyDeleteअरे वाह!! रवि अंकल ने तो आपके लिए बहुत सुन्दर कविता लिखी है. एक ठो हमारे लिए भी लिखवा दो न अपने अंकल से. :)
ReplyDeleteमम्मी की गोदी को पाकर,
ReplyDeleteकितना खुश हो जाता हूँ।
कभी मचलता, और फिसलता,
कभी शान्त सो जाता हूँ ।।
नन्हे मुन्ने राही के लिए नन्ही सी प्यारी सी कविता......बहुत सुंदर
ReplyDeleteLove ya...
कवि भी हो गये आदित्य रंजन "पल्टू"!
ReplyDeleteअरे पलटू तु मे रावेंद्रकुमार रवि जी का धन्यवाद किया की नही, अले इतनी सुंदर कविता लिखी आप के लिये, चलिये हम ध्न्यवाद कर देते है तुम्हारी ओर से , ओर तुम्हे भी प्यार
ReplyDeleteपल्टू राम , ये गीत हमने रविन्द्र कुमार जी के ब्लॉग पर पढ़ लिया था और उसी समय उनके ब्लॉग पर टिप्पणी में इस गीत के लिए आभार भी व्यक्त कर दिया था |
ReplyDeleteमम्मी और बालक एक दूसरे को पाकर
ReplyDeleteबहुत खुश हैं।
ममता का यही वास्तविक स्वरूप है।
माता की ममता से बढ़ कर दूसरा सुख कहीं नही है। रावेन्द्र जी की कविता और लेखनी सशक्त है।
ReplyDeleteबेहतरीन बाल गीत और बेहतरीन चित्र।
ReplyDeleteभाई रावेंद्र कुमार रवि को मेरी शुभकामनाएँ
प्रेषित करने का कष्ट स्वीकार करें।
उड़न-तश्तरी आई, लाई -
ReplyDeleteयहाँ नया उजियारा!
उजियारे में चमक रहा है -
सबका "आदि" दुलारा!
आदि की मोहक अदा
ReplyDeleteऔर
आप सबके प्रेरक संदेशों से
मुदित होकर
मन-मयूर
नृत्य कर उठा।