कल दोपहर की सैर करवाते करवाते पुखराज भैया मेरा प्राम पौधों की क्यारी में ले गये.. मुझे पौधों, पत्तियों को करीब से महसुस करवाने.. कुछ पत्तियों को छू कर देखा.. और धूप का मजा़ तो था ही... "ये पौधे, ये पत्ते, ये पेड़, ये हवाऐं....मन को लुभाऐ...."
भा गई न मेरी बातें ! बन जाओ मेरे सखा.. यहाँ चटका लगा कर!!
"ये पौधे, ये पत्ते, ये पेड़, ये हवाऐं....मन को लुभाऐ...."
ReplyDelete"ओये ओये आज तो आदि सुबह सुबह शायरी करने लगा.....लकिन हमे तो तुम्हारी ये प्यारी सी मुस्कान बहुत भाए... आज तो सुबह सुबह ही दिल खुश हो गया आदि की प्यारी प्यारी तस्वीरे देख कर..."
love ya...
पूरी कविता बनाओ यार-क्या माहौल खींचा है..चमन में तो पहुँचे ही हुए हो..गुनगुनी धूप भी है. सुनाओ सुनाओ!!
ReplyDeleteचलो हम भी थोडी सी तुकबंदी किए देते हैं आदि की शान में..
ReplyDeleteये पौधे, ये पत्ते, ये पेड़, ये हवाऐं....मन को लुभाऐ....
चलो आदि के साथ कुछ देर सेर ही कर आयें
आदि की बातें प्यारी प्यारी दिल गुदगुदायें
तभी तो हम बार बार आदि के ब्लॉग पर आयें.
बेटा प्रकृति का आनन्द लो और उसका संरक्षण करो!
ReplyDeleteपेड़ पौधों से दोस्ती कर लेना. लौटकर हाथ भी धुलवा लेना. कुछ पत्तों से एलर्जी भी होती है.
ReplyDeleteपल्टू यार तू कवि तो बन ही जायेगा. पर तू मेरे को कमजोर सा क्युं दिखाई दे रहा है भाई?
ReplyDeleteजरा खुराक जम कै खाया-पीया कर. जरा तगडा हो ज्या भाई.
रामराम.
अरे पलटू भाई देखा भगवान ने इस दुनिया को कितना सुंदर बनाया है, चलो खुब घुमो ताजी हवा मै. ओर गुनगुनी धुप मे.
ReplyDeleteप्यार ओर प्यार
क्या मस्त पैराम्बुलेटर है! हमें मिले तो बैठने को हम बच्चे बन जायें तुम्हारी तरह! :)
ReplyDeleteओए ....गड्डी तो बड़ी प्यारी है आदि की...
ReplyDeleteअरे वाह, तुम तो शायर बन गये। बधाई।
ReplyDeleteये पौधे, ये पत्ते, ये पेड़, ये हवाऐं....
ReplyDeleteमन को लुभाऐ....
चलो इन भोंरों के साथ हम भी गुनगुनाएं.