मित्रों,
२००८ हमारे लिये अपार खुशियां लाया.. आदि के रुप में एक नन्हा फरिस्ता हमारे आंगन में आया, उसकी किलकारियों से घर चहकने लगा..दादा-दादी,नाना-नानी सभी आदि को प्यार, दुलार कर खुश होते रहे.. घर में हर छोटा बडा़ आदि की बातें करने लगा और इस नन्हे "खिलौने" को अपने पास पाकर उत्साहित थे.. आदि के जन्म को लेकर हम भी काफी उत्साहित थे.. आखिर आदि के जन्म का सफ़र भी काफी़ उतार चढा़व वाला रहा (इस बारें में विस्तृत चर्चा फिर कभी)..
आदि के पालन के इस अनुभव को हम हर पल जीना चाहते थे और इसे चिर स्थाई यादों के रूप में संजोना चाहते थे.. इस बारे में कई तरह से सोचा, आदि की कई तस्वीरें ली.... ये सोचकर की एक फोटो हजा़र शब्दों के बराबर होती है.. पर कुछ ही समय में ये लगने लगा की हम हजारों फोटो के ढे़र पर बैठे होगें और धीरे-धीरे उनसे जुड़ी यादें भी विस्मृत हो जायेगी.. फिर कुछ छपी छपाई डायरी देखी.. पर उसमें लचिलेपन का आभाव था और रचनात्मकता की कमी.. आखिर ये आईडिया आया की क्यों न आदि का एक ब्लोग बना दिया जाय और उसे नियमित रुप से आदि के बारे में लिखते रहे, इस प्रकार फोटो, विडियो और उस के साथ आदि कि हर बात लिखने और शेयर करने का एक मंच मिलेगा और सभी परिवारजन दूर रहते हुऐ भी आदि के विकास को करीब से महसूस कर पायेंगें..एक और उद्देश्य हम इस ब्लोग से प्राप्त करना चाहते थे वो था पेरेन्टीग के इस अनुभव को साझा करना.. इस ब्लोग के माध्यम से भावी पेरेंट को यदि कुछ टिप्स मिल पाये
लेकिन आदि जन्म के कुछ समय बाद तक जोधपुर में था (अपनी मम्मी के साथ) और ये ब्लोग का आइडिया दिमाग में ही घुमता रहा..आखिर जब आदि जुलाई के प्रथम सप्ताह में दिल्ली आ गया.. और हमने १० जुलाई को आदित्य का ब्लोग का श्रीगणेश कर दिया..शुरुआत में तो इसे दोस्तो और मित्रों से शेयर किया और फिर कुछ सकारात्मक संकेत मिलने पर इसे बडे़ परिवार में सम्मिलित करने के लिये "चिट्ठाजगत" और "ब्लोगवाणी" में पंजीकॄत कर दिया.. और तब से आदि इस बड़े हिन्दी "चिट्ठा परिवार" का सदस्य बन गया.
मित्रों, इस वर्ष आप सभी ने इस ब्लोग के माध्यम से आदि को खुब प्यार दिया और हमें प्रोत्साहन.. आदि के बड़े होने की इस यात्रा में आप सभी सम्मिलित है.. इस माध्यम से हमें आपसे आदि के लालन पालन के लिये जरुरी मार्गदर्शन भी मिला.
२००८ के इस अंतिम दिन हम आप सभी का शुक्रिया अदा करते है और उम्मीद करतें है की आगे भी आपका साथ बना रहेगा.. और आपसे वादा करते है आपको २००९ में भी मुस्कान मिलेगी.. गारंटी से!!
आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाऐं!!
आभार
अंजु और रंजन
Wednesday, December 31, 2008
Sunday, December 28, 2008
कान्हा ये माखन नहीं है!
रोज़ देखता हूँ मम्मी, पापा और सभी को अपने आप खाते हुऐ, आज मैने भी खुद खाने की ठान ली थी, मम्मी के हाथ से चम्मच लिया और खाने लगा, मम्मी के लगा की चम्मच से मुँह में चोट लग जायेगी तो चम्मच हटा लिया.. पर मैं कहाँ रुकने वाला था, भुख भी तो जोर से लगी थी..कल तो मम्मी भी मेहरबान थी.. अपने आप खाने से नहीं रोका, पहले अपनी कटोरी खाली की, फिर मम्मी की कटोरी भी झपट ली.. और तो और हाथ में ठिक से सूजी नहीं आ रही थी तो पूरी कटोरी ही मुहँ से लगा ली..फिर क्या था, सूजी का प्याला और मैं.. खुब खाया, मुँह और कपडो़ पर लगाया, आप ही देख लिजिये कैसा मेकअप किया है?
कभी-कभी ऐसा हो तो कितना मज़ा आये! ऐसे ही तो मैं खाना सीखूंगा ना!
कभी-कभी ऐसा हो तो कितना मज़ा आये! ऐसे ही तो मैं खाना सीखूंगा ना!
Saturday, December 27, 2008
सर्दी और गुनगुनी धूप का मजा़
इन दिनों बहुत सर्दी हो रही है, दिन भर घर में दुबका रहना पड़ता है.. स्वेटर, मोजे, टोपी पहनना और रजाई में दुबक जाना.. वैसे मजा़ तो आता है, पर कितने दिन? ऐसे तो कोई भी बोर हो सकता है न? ..सुबह आंटी के घर जाना और शाम को वापस आना ये ही घूमना होता था.. अरे ये क्या बात हुई..
बहुत दिन हुए अब सर्दी का तोड़ निकला है, पता है परसों (गुरुवार को) पापा के साथ में धूप में घूमने गया.. बहुत लोग मिले, बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे और कपूर आंटी स्वेटर बुन रही थी.. और मैं अपने प्राम मे लेटा मजे से धूप का आंनद ले रहा था..हाँ थोडी मक्खियां परेशान कर रही थी पर पापा थे न..
ये अनुभव अच्छा रहा, और अब मैं रोज दोपहर में घूमने जाऊगां.. पापा-मम्मी ऑफिस जायेंगे तो क्या.. आंटी और पुखराज भैया मुझे घूमाने ले जायेंगे.. और में लूगां गुनगुनी धूप के मजे़!!
(राज भाटीया अंकल, ये मुस्कराती फोटो आपके लिये)
बहुत दिन हुए अब सर्दी का तोड़ निकला है, पता है परसों (गुरुवार को) पापा के साथ में धूप में घूमने गया.. बहुत लोग मिले, बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे और कपूर आंटी स्वेटर बुन रही थी.. और मैं अपने प्राम मे लेटा मजे से धूप का आंनद ले रहा था..हाँ थोडी मक्खियां परेशान कर रही थी पर पापा थे न..
ये अनुभव अच्छा रहा, और अब मैं रोज दोपहर में घूमने जाऊगां.. पापा-मम्मी ऑफिस जायेंगे तो क्या.. आंटी और पुखराज भैया मुझे घूमाने ले जायेंगे.. और में लूगां गुनगुनी धूप के मजे़!!
(राज भाटीया अंकल, ये मुस्कराती फोटो आपके लिये)
Friday, December 26, 2008
क्या-क्या सीखना पड़ता है!
कल बताया था कि मेरे दांत आ रहे है और अब मैं नयी नयी चीजे़ खाना सीख रहा हू! (देखे अपने दायें कालम में, मेरे नये स्वाद). अब खाना सीखा है तो पोटी करना भी तो सीखना पडे़गा न? मुझे तो एक चेयर काफ़ी पहले ही गिफ्ट में मिल गयी थी, जब में अर्पित, क्षितिज चाचा से मिलने चंडीगढ़ गया था तबसे.. खैर इतने दिनों तो ऐसे ही रखी थी पर अब मैने इस कुर्सी का उपयोग भी शुरु कर दिया है.. अभी तो बस सीख रहा हूँ इस पर बैठना, कभी-कभी थोड़ा डर भी जाता हूँ... पर इसके आगे लगे छल्ले है न मन बहलाने के लिये..
अरे बाबा!! क्या-क्या सीखना पड़ता है यहाँ?
अरे बाबा!! क्या-क्या सीखना पड़ता है यहाँ?
Thursday, December 25, 2008
खुशखबरी - खुशखबरी
बहुत दिनों से जिसका इंतजार था आखिर कल वो दिन आ ही गया..अब आप कहोगे, आदि बात तो बता क्या हो गया और किसका इंतजार था? तो सुनो मेरे भी दांत आने शुरु हो गये हैं... कल ही नीचे के जबडे़ से एक दांत झाकंता हुआ प्रकट हुआ!
पता है पापा ने इनाम की घोषणा की थी, जो मेरे दांत आने की खबर देगा उसे 100/- रु का इनाम मिलेगा.. केव्ल 100/- रु का इनाम? हां क्योंकि पापा को पता था कि वो तो जीत नहीं पायेंगें.. खैर वो इनाम तो कल मम्मी को मिल गया.. अब आप कहेगें की मैं दांत का करुगां क्या? तो आप ही देख लो.. मैने बिस्किट खाना शुरु भी कर दिया है.. हां खुद ही खा लेता हूँ अब तो.. दांतो का ये ही तो फा़यदा है!
अब तो बहुत सारे दांत आने वाले है, जैसे-जैसे आयेगें आपको जरुर बताऊगां..
पता है पापा ने इनाम की घोषणा की थी, जो मेरे दांत आने की खबर देगा उसे 100/- रु का इनाम मिलेगा.. केव्ल 100/- रु का इनाम? हां क्योंकि पापा को पता था कि वो तो जीत नहीं पायेंगें.. खैर वो इनाम तो कल मम्मी को मिल गया.. अब आप कहेगें की मैं दांत का करुगां क्या? तो आप ही देख लो.. मैने बिस्किट खाना शुरु भी कर दिया है.. हां खुद ही खा लेता हूँ अब तो.. दांतो का ये ही तो फा़यदा है!
अब तो बहुत सारे दांत आने वाले है, जैसे-जैसे आयेगें आपको जरुर बताऊगां..
Monday, December 22, 2008
छोटे मियां! ये छड़ी किसलिये?
पहले तो स्टेण्ड से खेला करता था.. उसे उठा भी लेता था.. पर अब तो उसे खोल भी लेता हूँ.. एसे ही खेल में एक छड़ी हाथ में आ गई.. फिर क्या था.. आप ही देखिये..
देखिये आपसे बात करते हुए समय कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला न? ये इस ब्लोग पर १०० वीं पोस्ट है.. है न?
देखिये आपसे बात करते हुए समय कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला न? ये इस ब्लोग पर १०० वीं पोस्ट है.. है न?
Sunday, December 21, 2008
भूलना नहीं आज पोलीयो रविवार है!!
आज है २१ दिसम्बर, यानि पोलीयो रविवार.. ५ साल से छोटे सभी बच्चो को आज पोलीयो की दवा पिलाई जाने वाली है.. मैं तो दो बार ये दवा पी चुका हूँ.. पर आज फिर पीने जाऊगां.. कहते है न.. "हर बच्चा, हर बार".
वैसे पिछले दो बार तो मैं बूथ पर नहीं जा पाया.. घर पर ही दवा पी पर आज तो पक्का बूथ पर जाकर दवा पीकर आऊंगा.. वो क्या है अगर कोई भूल गया और घर पर नहीं आ सका या वो जब आये और मैं घर ना मिला.. दोनों ही बातों में नुकसान तो मेरा ही होगा न? ना बाबा मैं तो समय से जाकर खुद ही दवा पीकर आने वाला हूँ..
वैसे बहुत लोग भूल जाते हैं.. अपने वीरू (विरेन्द्र सहवाग) भी भूल गये..अरे टीवी के विज्ञापन में.. खैर उनके बच्चे को तो उनके बाकी साथी बूथ पर ले गये.. आप मत भूल जाना..
मैं तो जा रहा हुँ..पोलीयो की दवा पीने.. आप भी आ रहे हैं न.. नन्हे-मुन्नों को लेकर!!
Saturday, December 20, 2008
कुछ खट्टा कुछ मीठा
कल डिनर में आलु मिलना था.. तो मेरे लिये आलु उबला गया, फिर मम्मी ने आलु मेश कर उसमें मक्खन और नमक मिलाकर उसे स्वादिष्ट बनाया ..
मम्मी एक कटोरी में मेरा डिनर लेकर मुझे गोदी में बिठाकर खिलाने लगी.. पर ये क्या.. वो खुद के लिये एक संतरा भी लाई थी.. अच्छा मेरे लिये आलु और अपने लिये संतरा.. वैसे तो मुझॆ आलु पंसद है, पर संतरा भी तो नई चिज थी.. फिर क्या था.. मैनें संतरे की डिमांड रख दी.. और मेरी डिमांड तो पूरी होनी ही थी.. बहुत मजे ले कर खाया.. और आप मेरे चहरे के भावों से समझ सकते हो.. की ये था "कुछ खट्टा कुछ मीठा"
मम्मी एक कटोरी में मेरा डिनर लेकर मुझे गोदी में बिठाकर खिलाने लगी.. पर ये क्या.. वो खुद के लिये एक संतरा भी लाई थी.. अच्छा मेरे लिये आलु और अपने लिये संतरा.. वैसे तो मुझॆ आलु पंसद है, पर संतरा भी तो नई चिज थी.. फिर क्या था.. मैनें संतरे की डिमांड रख दी.. और मेरी डिमांड तो पूरी होनी ही थी.. बहुत मजे ले कर खाया.. और आप मेरे चहरे के भावों से समझ सकते हो.. की ये था "कुछ खट्टा कुछ मीठा"
खट्टा
मीठा
Friday, December 19, 2008
जन्म का पंजीकरण जरूरी है!!
आपको पता है, जन्म का पंजीकरण कानूनी जरुरी है.. ये बात इसलिये कर रहा हूँ क्योंकि आज मेरा जन्म प्रमाणपत्र मिल गया है.. वैसे तो मेरे जन्म का पंजीकरण जन्म के ४ दिन बाद (६ मई को) ही हो गया था और बिना नाम वाला प्रमाण पत्र भी मिल गया था. पर बिना नाम वाला प्रमाण पत्र भला किस काम का? कोई पूछता तो क्या जबाब देता? इस बार दिपावली की छुट्टीयों में जोधपुर गया तो नाम वाले प्रमाण पत्र के लिये भी आवेदन कर दिया.. और "आदित्य रंजन" नाम वाला प्रमाण पत्र मिल गया.. पता है इतने दिनों से ये जोधपुर में ही रखा था.. कल ही पिकूं चाचा इसे दिल्ली लेकर आये है मेरे पास.
लेकिन मम्मी ने अभी मुझे इसे छूने ही नहीं दिया.. डरती है.. मैं चख जो लेता हूँ.
आपके पास भी है ऐसा प्रमाण पत्र?
लेकिन मम्मी ने अभी मुझे इसे छूने ही नहीं दिया.. डरती है.. मैं चख जो लेता हूँ.
मेरा जन्म प्रमाण पत्र
आपके पास भी है ऐसा प्रमाण पत्र?
Thursday, December 18, 2008
पापा गोदी ले लो प्लीज़..
आपको तो बताया ही था कि मैं आजकल दिन में आंटी के पास रहता हूँ.. और बहुत अच्छे से रहता हूँ. अब मैं मम्मी के बिना भी दिन में सो जाता हूँ, और आटीं से खाना भी खा लेता हूँ... जैसे-जैसे दिन तो बीत जाता है.... फिर तीन-चार बजे तक मम्मी भी आ जाती है.. मम्मी से खेल कर सो जाता हूँ.. मुझे इन्तजार रहता है शाम के छ: बजे का.. हाँ छ: बजे पापा आते है.. तो मैं काफी़ उत्साहित हो जाता हूँ.. और पापा की गोदी में जाने के लिये मचलने लगता हूँ.. और मेरी हूँ हूँ हूँ हूँ शुरु हो जाती है.. और पापा की गोदी में जाकर ही मानता हूँ..
और फिर शुरु होती है पापा के साथ unlimited मस्ती!!
गोदी में आने के लिये मेरा इशारा
और फिर शुरु होती है पापा के साथ unlimited मस्ती!!
Monday, December 15, 2008
नाखुन बढ़ते है और फिर कटते हैं!!
हर थोड़े दिनों में मेरे नाखुन बढ़ जाते हैं.. नाखुन बढ़ने से वैसे तो कोई परेशानी नहीं होती पर जब कान और आँख खुजाता हूं तो खरोंच लग जाती है.. अभी पिछली बार तो कान में खरोंच ज्यादा ही लग गई.. हल्का सा खून भी निकल आया.. फिर क्या था.. नाखुनों की बली..नाखुन गंदे भी तो बहुत होते है? फिर मैं तो हाथ और अंगुली अक्सर खाता हूँ.. तो साफ रखना बहुत जरुरी है..
खैर मुझे कोई विशेष आपत्ति नहीं होती नाखुन कटवाने में.. बस थोडा़ सा ध्यान इधर-उधर लगवाओ और नाखुन काट लो... मम्मी तो एक हाथ में खिलौना पकडा़ देती है.. और चुपके से कब नाखुन काट लेती है.. मुझे पता ही नहीं चलता है.. अभी तक तो पापा मेरे नाखुन काटते हुए डरते थे, कहीं चोट न लग जाये..लेकिन अब वो भी मेरे नाखुन काट देते है.. कल रविवार का था.. पापा फुरसत में थे और मेरे नाखुन फिर से कट गये..
Sunday, December 14, 2008
बियाणी जी री दुकान जा ने आयो!!
काळॆ में बियाणी जी री दुकान गयो हो... कई केवो थें, बियाणी जी री दुकान कौनी जाणों. अरे जाणता व्होला.. किणी और नाम सुं.. हाँ थे उने ’बिग बजा़र’ केवो.. जाण गया? तो आगे सुणों..
कई के अगले मईने (महीने) पिकूं चाचा रो ब्यांव (शादी) है.... ने मैं सब जणा जोधपुर जांवाला.. तो ब्याव से वास्ते नया कपड़ा तो लेवणा पडे़ नी.. और दिल्ली में ठंड भी घणी पड़ री है.. एक-आध स्वेटर ई ले लेवां तो ठीक इज रई.. तो आ खरीददारी करण वास्ते इज में काळे बियाणी जी री दुकान गयो..
आजकल बारे जाउण वास्ते खास तैयारियां करणी पड़े... सुबे इज प्रोग्राम बणा दियो.. मम्मी म्हने स्नान बीजी करान सुवाण दियो.. ताकी मैं आराम सूं घूम सकूं..ज्युंई (ज्योंही) में एक बजीया उठीओं.. पापा मम्मी मने ले न रवाना हो ग्या.. और मारो तो दोपारी रो वेळु (भोजन) भी गाड़ी में इज हुयों.. ज्यादा की नहीं बस.. केळा रो शेक पी लियो..
थोड़ी देर में तो म्हें उठे पुग ग्या.. अरे आ तो कोई नई जग्या कौनी थी.. एक बार पेली भी आन गया...उठे पहुचता ई पापा री गाड़ी ऊ उतर न खुद री गाड़ी (प्राम) में बैठ गया.. ने बज़ार घूमण लागा... दुकान में घुसता ई सीदा पोंच (पहुँच) गया टाबरा (बच्चों) रे सेक्शन में.. म्हारी गाड़ी साईड में लगार पापा मम्मी म्हारा कपड़ा ढुढण लाग्या.. खासी देर लगा न मारा कपडा पसंद कर लाया.. पापा-मम्मी भी आपरे जरुरत तो सामान खरीद लियों.. म्हने गाड़ी मे रमतो (खेलते) देख.. आऊण-जावण वाला लोग ई मारे साथे बाता कर रमण लाग्या.. ढाई तीन घण्टा फिर-फिरा न पाछा (वापस) घरे आया.. थाक (थकान) तो ग्या पर मजो घणों (बहुत) आयों..
(हम मुलत: जोधपुर राजस्थान से है.. और बचपन में राजस्थानी (मारवाड़ी) ही बोला करते थे.. घर में दादी, नानी अभी भी मारवाड़ी ही बोलती हैं.. लेकिन हमारी जुबान पर धीरे-धीरे हिन्दी स्थापित हो गई.. अगर आदि जोधपुर में रहता तो थोड़ी बहुत मारवाड़ी सीख ही जाता.. पर दिल्ली में? लेकिन हम कोशिश करेंगे की वो अन्य भाषाओं के साथ मारवाड़ी भी सीखे.. जब वो बडा़ होगा और ये पोस्ट पढे़गा तो शायद उसे इस मीठी बोली का स्वाद पता चलेगा.. इसी उम्मीद से ये पोस्ट हिन्दी मिश्रीत मारवाड़ी में- रंजन)
कई के अगले मईने (महीने) पिकूं चाचा रो ब्यांव (शादी) है.... ने मैं सब जणा जोधपुर जांवाला.. तो ब्याव से वास्ते नया कपड़ा तो लेवणा पडे़ नी.. और दिल्ली में ठंड भी घणी पड़ री है.. एक-आध स्वेटर ई ले लेवां तो ठीक इज रई.. तो आ खरीददारी करण वास्ते इज में काळे बियाणी जी री दुकान गयो..
आजकल बारे जाउण वास्ते खास तैयारियां करणी पड़े... सुबे इज प्रोग्राम बणा दियो.. मम्मी म्हने स्नान बीजी करान सुवाण दियो.. ताकी मैं आराम सूं घूम सकूं..ज्युंई (ज्योंही) में एक बजीया उठीओं.. पापा मम्मी मने ले न रवाना हो ग्या.. और मारो तो दोपारी रो वेळु (भोजन) भी गाड़ी में इज हुयों.. ज्यादा की नहीं बस.. केळा रो शेक पी लियो..
थोड़ी देर में तो म्हें उठे पुग ग्या.. अरे आ तो कोई नई जग्या कौनी थी.. एक बार पेली भी आन गया...उठे पहुचता ई पापा री गाड़ी ऊ उतर न खुद री गाड़ी (प्राम) में बैठ गया.. ने बज़ार घूमण लागा... दुकान में घुसता ई सीदा पोंच (पहुँच) गया टाबरा (बच्चों) रे सेक्शन में.. म्हारी गाड़ी साईड में लगार पापा मम्मी म्हारा कपड़ा ढुढण लाग्या.. खासी देर लगा न मारा कपडा पसंद कर लाया.. पापा-मम्मी भी आपरे जरुरत तो सामान खरीद लियों.. म्हने गाड़ी मे रमतो (खेलते) देख.. आऊण-जावण वाला लोग ई मारे साथे बाता कर रमण लाग्या.. ढाई तीन घण्टा फिर-फिरा न पाछा (वापस) घरे आया.. थाक (थकान) तो ग्या पर मजो घणों (बहुत) आयों..
(हम मुलत: जोधपुर राजस्थान से है.. और बचपन में राजस्थानी (मारवाड़ी) ही बोला करते थे.. घर में दादी, नानी अभी भी मारवाड़ी ही बोलती हैं.. लेकिन हमारी जुबान पर धीरे-धीरे हिन्दी स्थापित हो गई.. अगर आदि जोधपुर में रहता तो थोड़ी बहुत मारवाड़ी सीख ही जाता.. पर दिल्ली में? लेकिन हम कोशिश करेंगे की वो अन्य भाषाओं के साथ मारवाड़ी भी सीखे.. जब वो बडा़ होगा और ये पोस्ट पढे़गा तो शायद उसे इस मीठी बोली का स्वाद पता चलेगा.. इसी उम्मीद से ये पोस्ट हिन्दी मिश्रीत मारवाड़ी में- रंजन)
Saturday, December 13, 2008
आदि!! ये क्या हो रहा है?
जैसा की मैंने आपको बताया कि अब मैं समझदार हो रहा हूँ, चीजे पहचानने लगा हूँ.. आज मैं बताता हूँ मैं और क्या क्या करता हूँ..
1.कल की ही बात लो मेरे हाथ मैं मम्मी का धागा लग गया.. तो मैनें उसका क्या हाल किया...
1.कल की ही बात लो मेरे हाथ मैं मम्मी का धागा लग गया.. तो मैनें उसका क्या हाल किया...
2. अब मैनें गोदी में आने की फरमाईश भी करनी शुरु कर दी है.. कैसे? मेरे अपने इशारे है.. एकदम ओरिजनल... आज विडियो तो नहीं दिखा सकता पर.. मैं अकड़ कर दोनों हाथ उपर करता हूँ.. "मम्मी/पापा उठा लो न please"...
3. और मैं बैठना सीख रहा हूँ... पूरा तो नहीं पर बिना सहारे एक मिनिट तक बैठ सकता हूँ..
4. पलटाना सीखा है.. घूम भी जाता हूँ.. तो मेरी शरारतें भी शुरु हो गई.. देखे एक झलक.. प्राम में झुककर खाने के लिये बेल्ट ढूढ लाया और टेबल के नीचे भी एक चक्कर लगा आया..
5. अगर खाना न खाना हो तो.. तो क्या? मैं अपना मुँह कस के बंद कर लेता हूँ.. और उछलने लगता हूँ.. खिला के दिखा दे कोई?
6. मम्मी या पर्स हो या मेरा बैग.. मुझे उनके कस्सों से बेहद लगाव है.. और उन्हे पाने के लिये पूरा दम लगा देता हूँ.. किसलिये?.. खाने के वास्ते बाबा!!
7. सीट बेल्ट लगा कर पापा के साथ गाड़ी के आगे वाली सीट पर बैठ जाता हूँ.. हाँ गियर में मेरी विशेष रुचि रहती है.. तो कभी घुमाने ले जाओ तो संभल के!!
3. और मैं बैठना सीख रहा हूँ... पूरा तो नहीं पर बिना सहारे एक मिनिट तक बैठ सकता हूँ..
4. पलटाना सीखा है.. घूम भी जाता हूँ.. तो मेरी शरारतें भी शुरु हो गई.. देखे एक झलक.. प्राम में झुककर खाने के लिये बेल्ट ढूढ लाया और टेबल के नीचे भी एक चक्कर लगा आया..
5. अगर खाना न खाना हो तो.. तो क्या? मैं अपना मुँह कस के बंद कर लेता हूँ.. और उछलने लगता हूँ.. खिला के दिखा दे कोई?
6. मम्मी या पर्स हो या मेरा बैग.. मुझे उनके कस्सों से बेहद लगाव है.. और उन्हे पाने के लिये पूरा दम लगा देता हूँ.. किसलिये?.. खाने के वास्ते बाबा!!
7. सीट बेल्ट लगा कर पापा के साथ गाड़ी के आगे वाली सीट पर बैठ जाता हूँ.. हाँ गियर में मेरी विशेष रुचि रहती है.. तो कभी घुमाने ले जाओ तो संभल के!!
Wednesday, December 10, 2008
अब मुझे मुर्ख नहीं बना सकते..
आजकल मैं चीजों को पहचानना सीख गया हूँ.. रंग और आकार देखकर.. और उसी के चलते मैने अपनी पंसद और नापंसद भी बनानी शुरु कर दी है.. खिलौनों की टोकरी से कौनसा खिलौना उठाना है, किस चीज को लेना है किसे नहीं अब मैं खुद तय कर लेता हूँ.. और अगर कोई चीज मनपसन्द न हो तो विरोध जताने के तरीके भी इज़ाद कर लिये है..
अब कल की ही बात लो.. मम्मी ऑफि़स से आई और मैं उनकी गोद में लेटा था.. पापा सेण्डविच बना कर लाये.. गरम-गरम.. मेरे लिये तो बिल्कुल नई चीज़.. मैनें सेण्डविच की और हाथ बढाया.. मुझे भी खाना था भई.. पर मम्मी ने दूर हटा दिया.. सोच रही थी कि मेरे गले में न अटक जाये.. और उसमे मिर्ची भी थी... पर मुझे तो वो चाहिये ही था.. मैं पूरी ताकत से सेण्डविच पर झपटा.. लेकिन मम्मी तो मुझसे ज्यादा ताकतवर है.. दुर हटा दिया.. पर मेरा एक बल तो मम्मी पर भारी था.. ’रोने का बल’.. लेकिन तभी पापा एक नया जुगाड़ कर लाये.. मुझे बिस्किट पकडा़ने लगे.. लेकिन मैने तो सेण्डविच ही खाने की ठान रखी थी.. पापा की भी नहीं चली.. और आखि़र मैं मुझे सेण्डविच मिल ही गया..
अब मैं चीजें पहचानने लगा हूँ.. और आप मुझे मुर्ख नहीं बना सकते..
अब कल की ही बात लो.. मम्मी ऑफि़स से आई और मैं उनकी गोद में लेटा था.. पापा सेण्डविच बना कर लाये.. गरम-गरम.. मेरे लिये तो बिल्कुल नई चीज़.. मैनें सेण्डविच की और हाथ बढाया.. मुझे भी खाना था भई.. पर मम्मी ने दूर हटा दिया.. सोच रही थी कि मेरे गले में न अटक जाये.. और उसमे मिर्ची भी थी... पर मुझे तो वो चाहिये ही था.. मैं पूरी ताकत से सेण्डविच पर झपटा.. लेकिन मम्मी तो मुझसे ज्यादा ताकतवर है.. दुर हटा दिया.. पर मेरा एक बल तो मम्मी पर भारी था.. ’रोने का बल’.. लेकिन तभी पापा एक नया जुगाड़ कर लाये.. मुझे बिस्किट पकडा़ने लगे.. लेकिन मैने तो सेण्डविच ही खाने की ठान रखी थी.. पापा की भी नहीं चली.. और आखि़र मैं मुझे सेण्डविच मिल ही गया..
अब मैं चीजें पहचानने लगा हूँ.. और आप मुझे मुर्ख नहीं बना सकते..
Tuesday, December 9, 2008
तरह-तरह की टोपीयां - रंग बिरंगी टोपीयां
सर्दीया आ गई और मेरे लिये तरह-तरह की टोपियां भी.. जिसे देखो मुझे टोपी पहना जाता है.. सुन्दर सुन्दर रंग बिरंगी.. हालांकी मुझे टोपी पहना कम पसन्द है.. पर पापा मम्मी बार बार पहना देते है.. मुझे तो टोपी खाना ही पसन्द है.. आप भी देख लिजिये मेरी टोपीयां
पसंद आया मेरा टोपी कलेक्शन?
कम सर्दी के लिये कपडे़ की टोपी
बिल्ली वाली टोपी..पूछँ भी है
ऊन वाली टाईट टोपी
दो चोटीयों वाली टोपी
छुरंगे.. इसी से मुछे बनी थी
ये जैकेट में ही टोपी है..
गर्मी में पहनुगां इसे नानी लाई है
पसंद आया मेरा टोपी कलेक्शन?
Monday, December 8, 2008
पीछे खिसकना सीख रहा हूँ.
पलटना तो सीख ही गया था.. पर आजकल खिसकना सीख रहा हूँ.. अभी तो हाथ से धक्का लगा कुछ-कुछ पीछे खिसक लेता हूँ..
मैं क्या करू आजकल माहौल ही ऐसा है, पर मेरे लिये तो ये एक नई उपलब्धि है... अब जल्द ही आगे बढ़ने वाला हूँ..
मैं क्या करू आजकल माहौल ही ऐसा है, पर मेरे लिये तो ये एक नई उपलब्धि है... अब जल्द ही आगे बढ़ने वाला हूँ..
Saturday, December 6, 2008
कहाँ चढ़े हो?
बैठना सीख रहा हूँ.. थोडा सहारा मिल जाये तो कुछ देर बैठ भी सकता हूँ.. सोफा पर बैठता हूँ, पंलग पर बैठता हूँ, आंगन में बैठता हूँ.. और.. और... पापा के कन्धे पर भी.. शान से.
Friday, December 5, 2008
फुटबाल से हैण्डबाल..
शाम को पापा मम्मी बात कर रहे थे कि अब आदि को कौन रखेगा, उसके साथ कौन खेलेगा.. तय हुआ कि पापा आदि को आठ से साढे़ आठ तक रखेंगें उसके बाद मम्मी आदि को खाना खिलायेगी...फिर मम्मी किचन में चली गई और में और पापा मैदान में.. मैदान नहीं समझे? हमने पलंग को ही मैदान बना दिया और हैण्डबाल खेले.. और वो भी फुटबाल से.. मैच का लाइव टेलिकास्ट तो नहीं कर पाया.. पर नाराज क्यों होते हो...रिकोर्डिगं है न..
है तैयार आप भी मेरे साथ अगले मैच के लिये?
है तैयार आप भी मेरे साथ अगले मैच के लिये?
Thursday, December 4, 2008
अच्छा ही तो रहा..
कल सुबह-सुबह तैयार हो गया.. मेरे साथ मेरा बैग भी तैयार हो गया.. कपडे़, खिलौने, सिपर, बिछौना, ओढ़ना.. और खाना भी.. उपमा, सेरेलेक, बिस्किट और केला...
सुबह साढे़ नौ बजे मम्मी पापा के साथ आंटी के घर गया.. पहली बार तो आंटी की गोद में जाने से मना किया लेकिन दुबारा कहने पर लपक कर उनकी गोद में चला गया.. मुझे आंटी के पास छोड़ पापा मम्मी ओफि़स चले गये..
नया माहौल, नये लोग लेकिन मैनें जल्द ही दोस्ती कर ली, फिर तो अंकल-आंटी के साथ खूब खेला.. पहले तो खाना खाने में आनाकानी की लेकिन भूख तो लगती है न? थोड़ी देर के बाद खाना भी खा लिया.. थोड़ी देर सोया भी... हाँ मम्मी को बहुत miss किया.. उनके आँचल में लिपटने का मौका नहीं मिला न..
दोपहर ढ़ाई बजे पापा-मम्मी आ गये.. आटीं ने उनसे कहा कि "ये मेरे पास रह लेगा"... फिर तो खूब प्यार मिला.. आखि़र पाँच घण्टे का कोटा बकाया था न...
आप ही बताओ अच्छा ही तो रहा मैं?
सुबह साढे़ नौ बजे मम्मी पापा के साथ आंटी के घर गया.. पहली बार तो आंटी की गोद में जाने से मना किया लेकिन दुबारा कहने पर लपक कर उनकी गोद में चला गया.. मुझे आंटी के पास छोड़ पापा मम्मी ओफि़स चले गये..
नया माहौल, नये लोग लेकिन मैनें जल्द ही दोस्ती कर ली, फिर तो अंकल-आंटी के साथ खूब खेला.. पहले तो खाना खाने में आनाकानी की लेकिन भूख तो लगती है न? थोड़ी देर के बाद खाना भी खा लिया.. थोड़ी देर सोया भी... हाँ मम्मी को बहुत miss किया.. उनके आँचल में लिपटने का मौका नहीं मिला न..
दोपहर ढ़ाई बजे पापा-मम्मी आ गये.. आटीं ने उनसे कहा कि "ये मेरे पास रह लेगा"... फिर तो खूब प्यार मिला.. आखि़र पाँच घण्टे का कोटा बकाया था न...
आप ही बताओ अच्छा ही तो रहा मैं?
Wednesday, December 3, 2008
दुविधा
आदि के जन्म के बाद से ही अंजु (आदि की मम्मी) ने ओफि़स से छुट्टी ले रखी थी... लगभग साढे़ आठ माह से.. अंजु के ओफि़स को लेकर काफी दुविधा बनी हुई थी.... अगर अंजु ओफि़स जाती है तो आदि का ख्याल कौन रखेगा..क्या करे क्या नहीं.. काफी समय से सोच विचार चल रहा था..? और फैसले वक्त पर छोडे़ हुए थे.... अंजु लंबा अवकाश ले या फिर आदि को क्रेच में छोडे़... आदि को क्रेच में छोड़ने का विचार ही उदास करने जैसा है.. प्यारे आदि को कैसे किसी के भी पास छोड़ दे.. और कई लोगों से कई तरह के अनुभव भी सुने.. आखिर तय किया कि पता लगाया जाये क्रेच के नाम पर क्या विकल्प है.. लोगों से बात हुई.. गूगल की मदद ली और फिर कुछ जगह चक्कर लगाये.. कुछ ने कहा कि छोटे बच्चों (डेढ़ साल से कम) को नहीं रखते.. और जो कुछ तैयार हुए, वहां कि सफाई और अन्य चीजें देखकर तौबा कर ली.. अब कोई विकल्प नहीं था.. लगभग तय कर लिया था कि अंजु लम्बा अवकाश लेकर आदि का ख्याल रखेगी.....
इसी बीच एक नया विकल्प सामने आया.. पडौ़स की एक आंटी आदि को अपने पा़स रखने को तैयार हो गई.. सभी कुछ ठीक लग रहा है... घर के एकदम पास (बस एक फ्लोर ऊपर).. और घरेलु माहौल.. व्यवसायिकता से कुछ दूर...
सोचा है ये विकल्प आजमाने का... शुरु में सप्ताह में एक या दो दिन कुछ घण्टों के लिये.. और अगर आदि का मन लगता है और आदि अच्छा रहता है.. तो फिर धीरे धीरे...ज्यादा देर के लिये..
बहुत मुश्किल निर्णय है, पर.. क्या करें एकल परिवार में रहतें है.. तो आज आदि आंटी के पास..
इसी बीच एक नया विकल्प सामने आया.. पडौ़स की एक आंटी आदि को अपने पा़स रखने को तैयार हो गई.. सभी कुछ ठीक लग रहा है... घर के एकदम पास (बस एक फ्लोर ऊपर).. और घरेलु माहौल.. व्यवसायिकता से कुछ दूर...
सोचा है ये विकल्प आजमाने का... शुरु में सप्ताह में एक या दो दिन कुछ घण्टों के लिये.. और अगर आदि का मन लगता है और आदि अच्छा रहता है.. तो फिर धीरे धीरे...ज्यादा देर के लिये..
बहुत मुश्किल निर्णय है, पर.. क्या करें एकल परिवार में रहतें है.. तो आज आदि आंटी के पास..
Tuesday, December 2, 2008
दो गोली सुबह - दो गोली शाम
आज मेरा मंथली बर्थडे है.. ठीक पहचाना आज मैं पूरे सात माह का हो गया.. पिछले कई महिनों से आप सभी से नियमित मिलना हुआ और आपका बहुत प्यार मिला.. सच कहे तो बहुत मजा़ आ रहा है... आपका प्यार और आशीष हमेशा यूँ ही मिलती रहे..
अब आपको बताता हुँ कि आजकल नया क्या है? सभी कहते है कुछ समय में मेरे दांत आने वाले है, और कहते है कि ये बहुत तकलीफ वाला अनुभव हो सकता है.. कुछ ने सलाह दी कि केल्शियम की गोली लेने से दांत आराम से आते है.. आयुर्वेदिक, एलोपेथिक और होम्योपेथिक सभी तरह के नुस्खों की सलाह मिली.. थोडे दिनों पहले जोधपुर से मुझसे मिलने घनश्याम अंकल आये थे.. उन्होने भी होम्योपेथिक दवा का नाम बताया.. पर बिना सलाह के कोई दवा थोड़ी न लेते है.. है न? तो पापा ने डॉ जीतु से बात की.. उन्होने सलाह दी कि इसके लिए डेन्टोन (DENTON) सबसे अच्छी रहेगी.. इससे केल्शियम तो मिलेगा ही, साथ ही पेट के लिये भी उपयोगी रहेगी..तो अब मैं रोज चार गोली खाता हूँ.. पीस कर.. दो गोली सुबह - दो गोली शाम..
अब आपको बताता हुँ कि आजकल नया क्या है? सभी कहते है कुछ समय में मेरे दांत आने वाले है, और कहते है कि ये बहुत तकलीफ वाला अनुभव हो सकता है.. कुछ ने सलाह दी कि केल्शियम की गोली लेने से दांत आराम से आते है.. आयुर्वेदिक, एलोपेथिक और होम्योपेथिक सभी तरह के नुस्खों की सलाह मिली.. थोडे दिनों पहले जोधपुर से मुझसे मिलने घनश्याम अंकल आये थे.. उन्होने भी होम्योपेथिक दवा का नाम बताया.. पर बिना सलाह के कोई दवा थोड़ी न लेते है.. है न? तो पापा ने डॉ जीतु से बात की.. उन्होने सलाह दी कि इसके लिए डेन्टोन (DENTON) सबसे अच्छी रहेगी.. इससे केल्शियम तो मिलेगा ही, साथ ही पेट के लिये भी उपयोगी रहेगी..तो अब मैं रोज चार गोली खाता हूँ.. पीस कर.. दो गोली सुबह - दो गोली शाम..
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